मुरैना, 9 मई (हि.स.)। ग्वालियर शहर से 20 किलोमीटर दूर मुरैना जिले के बानमोर कस्बे के खदान रोड पर रहने वाले एक कुंभकार के घर घोड़ी ने मन्नतों के बाद दो खच्चरों को जन्म दिया तो पूरे परिवार ने दोनों ही खच्चरों का दष्ठौन धूमधाम से मनाया। परिवार ने अपने बच्चों का कभी दष्ठौन नहीं मनाया, लेकिन अपने दोनों खच्चरों के लिए 300 लोगों को भोज दिया। इसके साथ ही ससुराल की ओर से पच्छ भी मंगाया गया। पच्छ में झूले, खिलौने भी आए। केक काटा गया और बैंड-बाजे भी बजवाए गए। बानमोर कस्बे में हुए इस अजीबो गरीब आयोजन की गुरुवार को दिनभर प्रदेश में चर्चाएं होती रही।
खदान रोड पर रहने वाला सुनील प्रजापति का परिवार कुंभकार का व्यवसाय करता है। उसके पास एक घोड़ा व एक घोड़ी थी। उसने बेहट के काशीबाबा से मन्नत मांगी थी कि घोड़ी के खच्चर पैदा हो। अप्रैल महीने में सुनील प्रजापति की यह मन्नत पूरी हो गई। उसकी घोड़ी ने दो खच्चरों को जन्म दिया, जिसमें एक नर व एक मादा है। खच्चरों के जन्म के बाद मन्नत पूरी होने पर बुधवार को बच्चों की तरह सुनील ने इनका दष्ठौन का कार्यक्रम रखा। जिसमें पहले उनका नामकरण किया गया, जिसमें नर का नाम भोला व मादा का नाम चांदनी रखा गया। बकायदा लोगों को भोज के लिए आमंत्रित किया गया।
घोड़ा- घोड़ी व उनके खच्चरों को तैयार किया गया और इसके बाद केक काटकर दष्ठौन मनाया गया। इस दौरान सुनील के ससुराल की तरफ से पच्छ भी आया। जिसमें कपड़े, खिलौने व पालना तक लाया गया था। जहां पच्छ लेकर आने वाले ससुरालीजन का भी बैंड बाजों के साथ स्वागत किया गया। इस आयोजन की चर्चाएं दिनभर नगर में होतीं रहीं।
सुनील प्रजापति के खुद के चार बच्चे है। जिनमें निखिल 18 साल, नैंसी 12 साल, वेद आठ साल और गोद ली हुई बेटी भावना 22 साल है। इनमें से किसी का भी दष्ठौन नहीं किया गया है। इस कारण कुछ लोग घोड़ी के बच्चे का दष्टोन मनाने पर आश्चर्य भी किया। सुनील का मूल काम ईंट भट्टों से जुड़ा हुआ है, जहां खच्चर ही काम करते है। मिट्टी ढोने में खच्चरों का ही इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए उसने खच्चरों के पैदा होने के लिए भी मन्नत मांगी थी। सुनील का मानना है कि घर के पल रहे पशु भी परिवार का सदस्य होते हैं। यह दोनों मन्नत से पैदा हुए हैं।