स्थानीय बोली-भाषाओं के प्रचार-प्रसार पर कार्य करना होगा: मंत्री सुबोध ​उनियाल

देहरादून, 09 जुलाई (हि.स.)। विभागीय मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि हमें राजभाषा के साथ ही स्थानीय बोली-भाषाओं के प्रचार प्रसार पर कार्य करना होगा। उन्होंने उत्तराखण्ड की स्थानीय भाषाओं में महाकाव्यात्मक लोकगाथाओं आदि का संकलन और शोध पर कार्य करने के लिए एक समिति बनाने के निर्देश दिए।

सचिवालय में कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल की अध्यक्षता में मंगलवार को उत्तराखण्ड भाषा संस्थान, देहरादून की साधारण सभा एवं प्रबन्ध कार्यकारिणी की बैठक सम्पन्न हुयी। बैठक के दौरान कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि उत्तराखण्ड देवभूमि के साथ-साथ बुद्धिजीवियों, विद्वानों एवं साहित्यकारों की कर्मभूमि रही है। हमें राजभाषा के साथ ही स्थानीय बोली-भाषाओं के प्रचार-प्रसार पर कार्य करना होगा।

मंत्री ने विभाग की नियमावली एवं ढांचा शीघ्र तैयार किए जाने के भी निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की ओर से दिए जाने वाले पुरस्कार एवं सम्मान की नियमावली शीघ्र तैयार की जाए। इस दौरान 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस के अवसर पर उत्तराखण्ड माध्यमिक शिक्षा परिषद्, उत्तराखण्ड मदरसा बोर्ड एवं उत्तराखण्ड संस्कृत अकादमी के प्रतिभावान छात्रों को सम्मानित करने के प्रस्ताव पर सहमति प्रदान की गयी।

कैबिनेट मंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान के अन्तर्गत बाल साहित्य को भी जोड़ा जाए। साथ ही कहा कि शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की ओर से एससीईआरटी से समन्वय बनाते हुए स्थानीय बोली भाषाओं में कहानी, लघुकथा एवं नाटक आदि को छोटे बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल कराया जाए। उन्होंने उत्तराखण्ड साहित्य गौरव सम्मान के अन्तर्गत ऐसे वरिष्ठ साहित्यकारों, जिन्होंने साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है, के लिए सम्मान धनराशि को एक लाख से बढ़ाकर 1,51,000 (एक लाख इक्यावन हजार) किए जाने की बात कही। नवोदित को 50 हजार एवं सामान्य को 01 लाख का सम्मान दिया जाएगा। इससे पूर्व नवोदित को 50 हजार और बाकी सभी को एक लाख का पुरस्कार दिया जाता था। कैबिनेट मंत्री ने नवोदित साहित्यकारों को पुस्तक प्रकाशन में भी सहायता प्रदान किए जाने के निर्देश दिए।

साहित्य ग्राम के रूप में विकसित किया जाए:
मंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड भाषा संस्थान की ओर से साहित्यकारों के लिए लाईफ टाईम अचीवमेंट पुरस्कार शुरू किया जाए। उन्होंने कहा कि पर्यटन से जोड़ते हुए प्रदेश के प्रसिद्ध साहित्यकारों के ग्रामों को साहित्य ग्राम के रूप में विकसित किया जाना चाहिए, जिससे साहित्य लेखन से जुड़े देशी विदेशी पर्यटकों को इसका लाभ मिल सके। इन आदर्श ग्रामों को स्थानीय स्तर पर गठित समिति के माध्यम से संचालित किया जाए। उन्होंने उत्तराखण्ड की स्थानीय भाषाओं में महाकाव्यात्मक लोकगाथाओं आदि का संकलन एवं शोध पर कार्य करने के लिए एक समिति बनाए जाने के भी निर्देश दिए।

इस अवसर पर सचिव दिलीप जावलकर, विनोद रतूड़ी, निदेशक उत्तराखण्ड भाषा संस्थान स्वाति भदौरिया, कुलपति दून विश्वविद्यालय डॉ. सुरेखा डंगवाल, कुलपति उत्तराखण्ड संस्कृति विश्वविद्यालय प्रो. दिनेश चन्द्र शास्त्री, नरेन्द्र सिंह नेगी, डॉ. सुधारानी पाण्डेय, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, प्रो. देव सिंह पोखरिया, प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी, प्रो. मृदुला जुगरान, डॉ. हयात सिंह रावत और कौस्तुभानंद चंदोला सहित प्रबन्ध कार्यकारिणी के अन्य वरिष्ठ सदस्य उपस्थित थे।