बिहार की मिट्टी की संस्कृति से सूरत भूमि को सुगंधित कर रहा प्रवासी बिहार समाज

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सूरत, 11 अक्टूबर (हि.स.)। नवरात्र के दौरान गुजरात में माता अंबे की परंपरागत गरबा के जरिए पूजा-आराधना के साथ सुदूर बिहार प्रांत की संस्कृति भी समाहित प्रतीत हो रही है। एक ओर माता दुर्गा की महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा के आगे कलश स्थापना कर पूरे 9 दिनों तक श्रीदुर्गा सप्तशती के मंत्रों के उच्चारण से वातावरण गुंजायमान होता है, तो दूसरी ओर रात्रि बेला में माता अंबे की आराधना लिए गरबा का आयोजन लोगों को मंत्रमुग्ध कर देता है।

बिहार की इस संस्कृति को गुजरात की सिल्क-डायमंड सिटी सूरत में वर्षों से प्रवासी बिहारवासी संजो कर रखे हुए हैं। औद्योगिक शहर सूरत में करीब 7 से 8 लाख बिहार के विभिन्न जिलों और समाज के लोग बसे हुए हैं। हजारों लोगों की कई पीढ़ियां यहां सूरत में पली-बढ़ी है। इसके बावजूद बिहार प्रवासी गुजरात की संस्कृति को आत्मसात करने के साथ अपनी माटी के व्रत-त्योहार, रहन-सहन और खान-पान की संस्कृति को अपनाए हुए हैं। इस कार्य में यहां के प्रवासी बिहार के संगठन ने अहम भूमिका निभाई है। सूरत में सर्वप्रथम वर्ष 1994 में प्रवासी बिहार के लोगों ने दुर्गा पूजा का आयोजन किया। इसके लिए महिसासुरमर्दिन माता दुर्गा की प्रतिमा बैठाने का समाज के लोगों ने निर्णय किया। सूरत में रूपाली सिनेमा के सामने मैदान में पहली बार दुर्गा प्रतिमा बैठाई गई और 9 दिनों तक दुर्गाजी की पूजा आराधना की गई। इसके बाद अडाजण के पटेल प्रगति मंडल अमीधारा हॉल में दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ। इसके बाद कांरवा बढ़ता चला गया, इसके बाद आनंद महल रोड के स्नेह संकुल वाडी में आयोजन हुआ। बाद में रामनगर के सिंधी समाज की वाड़ी में इसका आयोजन हो रहा है। इस संबंध में बिहार विकास परिषद के पूर्व अध्यक्ष सुनील मिश्रा बताते हैं कि दुर्गा पूजा महोत्सव के जरिए ही परिषद की स्थापना हुई और बड़ी संख्या में समाज के लोगों को जोड़ने में मदद मिली। स्थापना से पहले वर्ष 1993 में गांधी स्मृति के समीप जीवन भारती में कार्यक्रम हुआ जिसमें परिषद के संगठन का चुनाव और पहले अध्यक्ष के रूप में एस डी सिंह का चुनाव किया गया। इसके बाद नयन शर्मा और बाद में के के शर्मा, सुनील मिश्रा, डॉ पी आर महेरिया, दिलीप शाह अध्यक्ष बने। मौजूदा अध्यक्ष के तौर पर धर्मेश सिंह काम कर रहे हैं।

नई पीढ़ी को बिहार के त्योहारों से कर रहे अवगत

परिषद के पूर्व अध्यक्ष सुनील मिश्रा बताते हैं कि बिहार समाज के लोगों के बच्चे गुजरात आने के बाद यहां के बच्चों के साथ हिल-मिल जाते हैं। यहां की संस्कृति को जानने के साथ वे बिहार की संस्कृति-व्रत-त्योहारों को नहीं भूले इसके लिए त्योहारों का सामूहिक आयोजन किया जाता है। इसके तहत बिहार विकास परिषद की ओर से मकर संक्रांति पर चुरा-दही का कार्यक्रम, होली का उत्सव, दुर्गा पूजा और छठ पूजा का आयोजन किया जाता है। छठ पूजा के समय तो सूरत के तापी किनारे हजारों बिहार वासियों की भीड़ उमड़ पड़ती है, जिसमें परिषद के दर्जनों कार्यकर्ता दिन-रात एक कर व्रतियों की सुविधा के लिए घाटों की सफाई से लेकर अन्य सभी जरूर व्यवस्था करते हैं।

कई तरह के सेवा प्रकल्पों का संचालन

बिहार विकास परिषद के कार्यकर्ता देश-समाज के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। प्रधानमंत्री राहत कोष में फंड भेजने के साथ अन्य किसी भी आपदा में भी बिहार के प्रवासी सभी संभव सहायता करते हैं। बिहार के प्रवासी को भी मेडिकल सहायता समेत अन्य जरूरी आर्थिक मदद भी की जाती है।

परिषद बनाएगी सूरत में बिहार भवन

बिहार समाज सूरत में अपना बिहार भवन बनाने की दिशा में प्रयत्नशील है। इसके लिए संरक्षक के के शर्मा, अध्यक्ष धर्मेश सिंह, पूर्व अध्यक्ष सुनील मिश्रा, लोकेन्द्र सिंह, रमेश तिवारी, अमलेश सिंह, दिलीप शाह, संजय झा, संजय सिंह समेत दर्जनों कार्यकर्ता इसके लिए योजना पर काम कर रहे हैं। बिहार विकास परिषद ने इसके लिए जमीन खरीदने से लेकर अन्य सभी योजना पर काम शुरू किया है।