Mental Peace : आपका दिमाग थक चुका है, उसे एक ब्रेक दीजिए ,क्यों ज़रूरी है डिजिटल डिटॉक्स?
News India Live, Digital Desk: क्या आपके साथ भी ऐसा होता है? आप सुबह उठते ही सबसे पहले अपना फोन चेक करते हैं। रात को सोने से ठीक पहले तक स्क्रीन पर कुछ न कुछ स्क्रॉल कर रहे होते हैं। हर दो मिनट में नोटिफिकेशन चेक करने की आदत बन गई है और अगर फोन पास न हो, तो एक अजीब सी बेचैनी होने लगती है।
अगर इन सवालों का जवाब 'हाँ' है, तो यकीन मानिए आप अकेले नहीं हैं। हम सब एक ऐसी दुनिया में जी रहे हैं, जहाँ हमारा दिमाग लगातार जानकारी की बमबारी झेल रहा है - वॉट्सऐप मैसेज, इंस्टाग्राम रील्स, न्यूज़ अपडेट्स, ईमेल्स... यह लिस्ट कभी खत्म नहीं होती। इसका नतीजा? हमारा दिमाग थक रहा है। उसकी फोकस करने की ताकत कम हो रही है और हम पहले से ज़्यादा चिड़चिड़े और बेचैन रहने लगे हैं। इसी समस्या का समाधान है - डिजिटल डिटॉक्स।
क्या है डिजिटल डिटॉक्स?
इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप अपना फोन फेंक दें या टेक्नोलॉजी के दुश्मन बन जाएं। इसका सीधा सा मतलब है, जान-बूझकर कुछ समय के लिए डिजिटल दुनिया (फोन, लैपटॉप, टीवी) से एक ब्रेक लेना, ताकि आपका दिमाग रीचार्ज हो सके। ठीक वैसे ही जैसे आपके शरीर को आराम की ज़रूरत होती है, आपके दिमाग को भी इस लगातार 'ऑन' रहने की आदत से छुट्टी चाहिए।
आपके दिमाग पर क्या असर डाल रही है यह 'डिजिटल लत'?
- फोकस खत्म हो रहा है: लगातार नोटिफिकेशन्स और नई-नई जानकारी हमारे दिमाग को एक जगह टिकने ही नहीं देती। इससे हमारी किसी भी काम पर गहराई से ध्यान लगाने की क्षमता कम हो रही है।
- तुलना और तनाव: सोशल मीडिया पर दूसरों की 'परफेक्ट' जिंदगी देखकर हम अनजाने में ही अपनी जिंदगी से उसकी तुलना करने लगते हैं, जिससे तनाव, चिंता और अकेलापन बढ़ता है।
- नींद की बर्बादी: स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी (Blue Light) हमारे दिमाग को यह सिग्नल देती है कि अभी दिन है, जिससे नींद लाने वाले हॉर्मोन मेलाटोनिन का उत्पादन कम हो जाता है। नतीजा, हमें देर तक नींद नहीं आती और नींद की क्वालिटी भी खराब होती है।
- वास्तविक रिश्तों से दूरी: हम घंटों वर्चुअल दोस्तों से बात करते हैं, लेकिन अपने ही घर में अपने परिवार के साथ बैठकर 15 मिनट भी बिना फोन के नहीं बिता पाते।
कैसे करें डिजिटल डिटॉक्स की शुरुआत? (छोटे और आसान कदम)
- सोने से एक घंटा पहले 'नो फोन' रूल: यह सबसे ज़रूरी और सबसे असरदार कदम है। सोने से कम से कम एक घंटा पहले अपना फोन दूर रख दें। इसकी जगह कोई किताब पढ़ें या बस शांत बैठें।
- नोटिफिकेशन्स बंद करें: अपने फोन की सेटिंग्स में जाकर गैर-ज़रूरी ऐप्स के नोटिफिकेशन्स बंद कर दें। हर 'टिंग' की आवाज पर फोन उठाने की आदत को तोड़ें।
- 'नो-फोन ज़ोन' बनाएं: घर में कुछ जगहें तय करें जहाँ फोन ले जाने की इजाजत नहीं होगी, जैसे - डाइनिंग टेबल या बेडरूम।
- एक हॉबी चुनें: कोई ऐसा काम ढूंढें जिसे करने में आपको मज़ा आता हो और जिसमें स्क्रीन की ज़रूरत न हो। जैसे - गार्डनिंग, पेंटिंग, वॉकिंग या कोई म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट बजाना।
- चेक करने का समय तय करें: सोशल मीडिया या पर्सनल मैसेज चेक करने के लिए दिन में 2-3 बार 15-20 मिनट का समय तय करें, न कि हर 5 मिनट में।
शुरुआत में यह थोड़ा मुश्किल लग सकता है, लेकिन कुछ ही दिनों में आप महसूस करेंगे कि आपका मन पहले से ज़्यादा शांत है, आप बेहतर फोकस कर पा रहे हैं और आपको नींद भी अच्छी आ रही है। याद रखिए, असली दुनिया वर्चुअल दुनिया से कहीं ज़्यादा खूबसूरत है, बस हमें उससे दोबारा जुड़ने की ज़रूरत है।
--Advertisement--