मानव को कई जन्मों के बाद भगवत शरण मिलती है: पं वेदांत महाराज

छतरपुर, 3 मई (हि.स.)। महाराजपुर नगर के प्राचीन कालीमाता मंदिर प्रांगण में संगीतमय भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। वृन्दावन धाम से आये कथा व्यास पंडित वेदांत शास्त्री ने कथा के दूसरे दिन शुक्रवार को विधि विधान से भागवत भगवान की आरती की। इसके पश्चात सुकदेव चरित्र कथा का विस्तार पूर्वक मनोहारी वर्णन किया और प्रांगण में उपस्थित सभी भगत भवविभोर हो गए।

सुकदेव धुंधकारी की कथा सुनाते हुए कथा व्यास वेदांत महाराज ने बताया कि माँ जननी होती है और यदि माँ चाहे तो अपनी संतान को अच्छा या बुरा बना सकती है क्योकि संतान का सर्वाधिक समय अपनी माँ के साथ ही व्यतीत होता है। यदि संतान गलती करे तो उस गलती को रोककर सुधार सकती है या अनदेखा करके उसे बिगाड़ सकती है।

कथा में आगे पं वेदांत बताते हैं कि श्रीमद् भागवत कथा से मनुष्यों को ज्ञान व वैराग्य की प्राप्ति होती है। श्रीमद् भागवत कथा जीवन में उद्देश्य व दिशा को दर्शाती है, इसलिए कहते हैं कि श्रीमद् भागवत कथा सुनने मात्र से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसे ईश्वर के श्रीचरणों में स्थान मिलता है। पंडित वेदांत महाराज बताते हैं कि धुंधकारी ने अपने जीवन में बहुत पाप किए थे, लेकिन श्रीमद् भागवत कथा सुनकर उसका उद्धार हुआ था।

तुंगभद्रा नदी के तट आत्मदेव नामक ब्राह्मण रहता था, जो बड़ा ही विद्वान था. आत्मदेव को सबसे बड़ा दुख यह था कि उसके कोई संतान नहीं थी। एक बार वह जंगल में गया तो उसे एक साधु मिले, उसने साधु को अपनी पीड़ा बताई तब साधु ने उसे एक फल दिया और कहा कि इसे अपनी पत्नी धुंधली को खिला देना. लेकिन, उसकी पत्नी ने ये फल खुद नहीं खाया और इसे गाय को खिला दिया। कुछ समय बाद गाय ने एक बच्चे को जन्म दिया, जो एक मनुष्य के रूप में था उसका नाम गोकर्ण रखा गया। वहीं, धुंधली को उसकी बहन ने अपना एक पुत्र दे दिया, जिसका नाम धुंधकारी रखा गया दोनों पुत्र में गोकर्ण तो ज्ञानी व पंडित निकला, लेकिन धुंधकारी दुष्ट व दुराचारी निकला, उसने अपने जीवन में चोरी करना शुरू कर दिया, उसने दूसरों को कष्ट पहुंचाना शुरू कर दिया, इससे दुखी होकर पिता आत्मदेव घर छोड़कर वन में चले गए।