कोलकाता, 04 जुलाई (हि.स.)। पश्चिम बंगाल के विभिन्न हिस्सों में भीड़ के हाथों हिंसा की घटनाओं को लेकर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रशासन की विफलता स्वीकार करने के बजाय राज्यपाल डॉ सी.वी. आनंद बोस को जिम्मेदार ठहराया है। इतना ही नहीं उन्होंने हिंसा की इस तरह की घटनाओं का एक तरह से बचाव करते हुए यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में भी ऐसी घटनाएं होती हैं।
गुरुवार को उन्होंने राज्य के अपने ही पार्टी के नेताओं की ओर से बनाए गए एक संगठन के सदस्यों से मुलाकात की। उनके साथ चाय पर मुलाकात के दौरान ममता ने राज्यपाल पर निशाना साधा और कहा कि विधानसभा ने भीड़ की हिंसा रोकने के लिए कानून बनाया है लेकिन राज्यपाल ने उसे अभी तक हस्ताक्षर कर अपनी सहमति नहीं दी है। इसकी वजह से इसे लागू नहीं किया जा सका है।
गुरुवार को आलीपुर में सौजन्य प्रेक्षागृह में इस मुलाकात के दौरान ममता ने कहा कि यदि राज्य में इस बिल को लागू किया गया होता, तो शायद इतनी घटनाएं नहीं होतीं।
राज्यसभा के तृणमूल सांसद डोला सेन, पूर्व मंत्री पूर्णेन्दु बसु ने ”देश बचाओ गणमंच” के रूप में एक संगठन बनाया है। इसमें विभिन्न क्षेत्रों के प्रबुद्ध वर्ग के लोग शामिल हैं। हालांकि सारे सत्तारूढ़ पार्टी से जुड़े हुए हैं।
2019 में राज्य विधानसभा में सामूहिक हिंसा विरोधी बिल पारित हुआ था। इसमें भीड़ के हाथों हिंसा की घटनाओं पर कठोर सजा का जिक्र किया गया था। इस बिल को राजभवन को सम्मति के लिए भेजा गया था। तब राज्यपाल ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। उस समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ थे। उनका आरोप था कि जो बिल विधानसभा में पास हो गया था और जो राजभवन में भेजा गया था, वे अलग हैं। इस विषय में जवाब स्पीकर से मांगा गया था।
विधानसभा के स्पीकर बिमान बनर्जी ने हाल में बताया कि उन्होंने राजभवन में उस बिल के संबंध में सभी सवालों के जवाब भेज दिए थे। धनखड़ के बाद कुछ दिनों के लिए ला गणेशन बंगाल के अस्थाई राज्यपाल बने थे। इसके बाद राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस आए थे। तब से बिल उनके हस्ताक्षर नहीं होने के चलते राजभवन में ही अटका हुआ है।