स्वयंसेवकों की नियुक्ति में भारी गड़बड़ी, राज्यपाल ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मांगी रिपोर्ट

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कोलकाता, 22 अक्टूबर (हि.स.)। पश्चिम बंगाल में नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की भर्ती को लेकर राज्यपाल डॉ. सी. वी. आनंद बोस ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से जवाब मांगा है। यह कदम तब उठाया गया है जब सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में नागरिक स्वयंसेवकों की भर्ती प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए थे। राज्यपाल ने कहा है कि इन स्वयंसेवकों की भर्ती और उन्हें दी गई जिम्मेदारियों को लेकर कई कानूनी और प्रशासनिक मुद्दे हैं जिनका निपटारा आवश्यक है।

राज्यपाल बोस ने मुख्यमंत्री से नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की कुल संख्या के बारे में जानकारी मांगी है, जिनकी नियुक्ति 2021 से अब तक की गई है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी पूछा है कि इन स्वयंसेवकों को कितनी राशि का भुगतान किया गया है और उनके लिए क्या कानूनी आधार है। राज्यपाल का कहना है कि यह स्पष्ट किया जाए कि किस सरकारी आदेश के तहत इनकी भर्ती की गई है और इनके लिए भर्ती के नियम क्या हैं।

उन्होंने यह भी जानना चाहा है कि क्या इन स्वयंसेवकों को तैनात करने से पहले कोई विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है, खासकर स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में। इसके अलावा, राज्यपाल ने यह सवाल उठाया है कि किन विभागों में इनकी तैनाती की गई है और उनकी रोजगार अवधि कितनी है।

राज्यपाल ने यह भी स्पष्ट करने की मांग की है कि राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में स्वीकृत पदों की संख्या और रिक्तियों की स्थिति क्या है। उन्होंने मुख्यमंत्री से यह पूछा है कि खुले भर्ती प्रणाली के तहत कितने सरकारी कर्मचारियों की भर्ती की गई है और उन्हें कितनी राशि का भुगतान किया जा रहा है।

इसके साथ ही राज्यपाल ने यह सवाल उठाया है कि स्थायी कर्मचारियों के पदों को न भरने का कारण क्या है और उनकी जगह नागरिक स्वयंसेवकों की भर्ती क्यों की जा रही है।

राज्यपाल ने उठाए गए इन सवालों के पीछे सुप्रीम कोर्ट की उन टिप्पणियों का जिक्र किया है जिसमें अदालत ने नागरिक पुलिस स्वयंसेवकों की भर्ती प्रक्रिया पर चिंता जताई थी। अदालत ने कहा था कि इस प्रक्रिया में कानूनी प्राधिकरण की कमी है, जिससे राजनीतिक संरक्षण और पक्षपात की संभावना बढ़ जाती है। इसके अलावा, बिना उचित सत्यापन के भर्ती की जाने वाली यह प्रक्रिया संभावित आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को भी शामिल करने की गुंजाइश देती है। अदालत ने आर.जी. कर अस्पताल के बलात्कार-हत्या मामले में मुख्य आरोपित संजय रॉय का उदाहरण भी दिया, जिसे नागरिक स्वयंसेवक के रूप में भर्ती किया गया था, जबकि उस पर आपराधिक आरोप थे।

राज्यपाल ने यह भी बताया कि नागरिक स्वयंसेवकों को केवल 10 दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है, जो जटिल कानून प्रवर्तन की स्थितियों से निपटने के लिए अपर्याप्त है। उनकी तैनाती में भी पारदर्शिता की कमी है और उनके कार्यों की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं हैं। इसके साथ ही, अस्पतालों और स्कूलों जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में इनकी तैनाती से शक्ति के दुरुपयोग की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि भर्ती के तौर-तरीके, योग्यताएं और सत्यापन प्रक्रियाएं क्या हैं, जिससे भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी का संकेत मिलता है।

राज्यपाल की यह पहल राज्य में एक बड़े प्रशासनिक और राजनीतिक बहस का विषय बन गई है। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इस पर क्या जवाब देती हैं और राज्य सरकार इस मुद्दे को सुलझाने के लिए क्या कदम उठाती है।