2019 में बीजेपी और शिवसेना (यूनाइटेड) ने मिलकर चुनाव लड़ा और भारी बहुमत के साथ सीटें जीतीं, लेकिन नतीजों के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते टूट गए. बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बाद उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया और मुख्यमंत्री बन गए. उद्धव ठाकरे के साथ राजनीतिक तौर पर सामंजस्य बिठाने के लिए बीजेपी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर शिवसेना से बगावत करने का इनाम दिया. एनसीपी को दो हिस्सों में बांटने के बदले अजित पवार को डिप्टी सीएम का पद दिया गया था, लेकिन वह इस फॉर्मूले को आगे नहीं ले जाना चाहते. ऐसे में सीएम चेहरे पर सस्पेंस बरकरार रखने की रणनीति अपनाई गई है, जिसके चलते शिंदे को सीएम चेहरा नहीं बनाया गया है.
एकनाथ शिंदे के साथ कोई डील नहीं हुई है
चुनाव घोषणापत्र की घोषणा करते हुए अमित शाह ने कहा कि फिलहाल हमारे मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं, लेकिन नए मुख्यमंत्री पर फैसला चुनाव के बाद एनडीए के तीनों दलों- बीजेपी, शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी की बैठक में लिया जाएगा. बीजेपी ने साफ कर दिया है कि एकनाथ शिंदे सीएम का चेहरा नहीं हैं. ऐसे में बीजेपी चुनाव से पहले सीएम पद को लेकर कोई वादा नहीं करना चाहती, ताकि चुनाव के बाद यू-टर्न न ले सके. इसीलिए वह कोई पक्की डील नहीं कर रही है और सीएम चेहरे का विकल्प खुला रखना चाहती है.
शिवसेना के साथ सामंजस्य बिठाने और वक्त की सियासी नजाकत को समझने के लिए बीजेपी ने 2022 में एकनाथ शिंदे को सीएम बनाने का फैसला किया था, लेकिन अब हालात बदल गए हैं. बीजेपी जिस योजना के साथ शिंदे और अजित पवार को एक साथ लेकर आई थी वह लोकसभा चुनाव में सफल नहीं हो पाई. अजित पवार अपना गढ़ नहीं बचा सके और शिंदे भी उद्धव ठाकरे के सामने हारे हुए दिखे. ऐसे में बीजेपी के पास महाराष्ट्र में अपना सीएम पद बरकरार रखने का ही विकल्प है और यही वजह है कि वह शिंदे के नाम पर मुहर नहीं लगा रही है. शाह के मुताबिक, यह साफ है कि बीजेपी चुनाव के बाद परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए सीएम के चेहरे पर फैसला लेगी.
मुख्यमंत्री के चेहरे पर फिर सवाल
भले ही महाराष्ट्र में एनडीए सरकार की बागडोर फिलहाल एकनाथ शिंदे के हाथों में है, लेकिन बीजेपी उन्हें मैदान में नहीं उतारना चाहती. इसीलिए अमित शाह ने साफ कर दिया है कि फिलहाल शिंदे मुख्यमंत्री जरूर हैं, लेकिन नए सीएम का फैसला चुनाव के बाद तीनों पार्टियां करेंगी. बीजेपी चुनाव में शिंदे को सीएम चेहरा बनाकर कोई राजनीतिक जोखिम लेने के मूड में नहीं है, क्योंकि एकनाथ शिंदे मराठा समुदाय से आते हैं। राज्य में बीजेपी का राजनीतिक आधार शुरू से ही ओबीसी जातियों के बीच रहा है.
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक शिंदे को सीएम चेहरा बनाकर बीजेपी ओबीसी समुदाय के वोटों को नाराज नहीं करना चाहती है. आरक्षण आंदोलन के कारण मराठा बनाम ओबीसी और धनगर बनाम आदिवासी मुद्दे पहले से ही चल रहे हैं। ऐसे में अगर समुदाय का कोई नेता मुख्यमंत्री का चेहरा आगे करता है तो दूसरों के नाराज होने का डर रहता है. इसीलिए बीजेपी ने शिंदे के नाम से परहेज किया है और चुनाव के बाद सीएम पर फैसला लेने की बात कर सभी को लुभाने की कोशिश कर रही है.