Mahakumbh 2025: महाकुंभ में ये संत हैं IITs से पासआउट, करोड़ों की नौकरी छोड़ चुना आध्यात्म का रास्ता
महाकुंभ 2025, जो दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, इस बार कुछ अनोखी कहानियों का केंद्र बना हुआ है। संगम के पावन तट पर जहां करोड़ों श्रद्धालु अपनी आस्था की डुबकी लगाने आ रहे हैं, वहीं साधु-संतों का जमावड़ा भी अपनी अलग छटा बिखेर रहा है।
लेकिन इस बार चर्चा का विषय हैं वे संत, जो देश की सबसे प्रतिष्ठित संस्थाओं, जैसे IITs (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान), से पढ़ाई कर चुके हैं। करोड़ों की सैलरी और ग्लैमरस करियर को छोड़कर, इन लोगों ने जीवन का रास्ता बदलते हुए आध्यात्मिकता की ओर रुख किया।
IITs से संत बनने तक का सफर
IIT से पासआउट होना भारत में हर युवा का सपना होता है। यह संस्थान छात्रों को शानदार करियर और जीवन की ऊंचाइयों पर पहुंचाने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन ऐसे कई छात्र, जिन्होंने IIT से डिग्री हासिल की, करोड़ों के पैकेज को ठुकराकर जीवन की गहरी सच्चाइयों की तलाश में अध्यात्म का रास्ता अपना चुके हैं।
महाकुंभ 2025 में ऐसे कई संत मौजूद हैं, जिनकी कहानियां प्रेरणादायक हैं। ये संत अपने जीवन की यात्रा के जरिए लोगों को यह सिखा रहे हैं कि बाहरी दुनिया की चकाचौंध से अधिक महत्वपूर्ण आत्मिक शांति है।
कौन हैं ये संत?
महाकुंभ में इस बार जिन संतों की चर्चा हो रही है, उनमें से कुछ प्रमुख नाम:
- स्वामी विद्येशानंद
IIT खड़गपुर के पूर्व छात्र स्वामी विद्येशानंद ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई की। अमेरिका की एक बड़ी कंपनी से करोड़ों के पैकेज का ऑफर ठुकराकर उन्होंने बनारस के एक आश्रम में सन्यास लिया। आज वे गीता और वेदांत का प्रचार कर रहे हैं। - योगी प्रणवेश्वरानंद
IIT बॉम्बे से कंप्यूटर साइंस में मास्टर्स करने के बाद, योगी प्रणवेश्वरानंद ने गूगल जैसी दिग्गज कंपनियों में काम किया। लेकिन एक यात्रा के दौरान उन्होंने जीवन का गहरा उद्देश्य खोजने की ठानी और हिमालय के एक मठ में सन्यास धारण किया। - स्वामी आत्मारामानंद
IIT दिल्ली के पूर्व छात्र स्वामी आत्मारामानंद, जो केमिकल इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं, ने अपना जीवन भक्ति और सेवा को समर्पित कर दिया। उनका कहना है कि विज्ञान और आध्यात्मिकता दोनों एक ही उद्देश्य—जीवन के सत्य को समझने—की ओर ले जाते हैं।
क्यों चुना आध्यात्म का रास्ता?
इन संतों से जब यह पूछा गया कि उन्होंने IIT जैसी प्रतिष्ठित शिक्षा और करोड़ों के करियर को क्यों छोड़ा, तो उनका उत्तर सादा लेकिन गहराई से भरा हुआ था।
- आत्मिक शांति की तलाश
उनका कहना है कि बड़ी सैलरी और सुविधाजनक जीवन बाहरी सुख दे सकता है, लेकिन आत्मा की शांति केवल आध्यात्मिकता में ही मिलती है। - जीवन के गहरे उद्देश्य की खोज
इंजीनियरिंग और तकनीकी क्षेत्र में काम करते हुए उन्होंने महसूस किया कि जीवन केवल धन और भौतिक सफलता तक सीमित नहीं है। - समाज के लिए सेवा का भाव
इन संतों का मानना है कि शिक्षा और ज्ञान का सही उपयोग तभी है, जब वह समाज और मानवता के कल्याण में लगे।
महाकुंभ 2025 में इन संतों का योगदान
महाकुंभ में ये IIT पासआउट संत न केवल धार्मिक आयोजनों का हिस्सा बन रहे हैं, बल्कि अपने अनुभवों और ज्ञान से लाखों श्रद्धालुओं को जीवन के नए आयामों से परिचित करवा रहे हैं।
- आध्यात्मिक प्रवचन:
ये संत गीता, वेदांत और उपनिषद जैसे ग्रंथों पर प्रवचन दे रहे हैं। - मेडिटेशन और योग सत्र:
श्रद्धालुओं को ध्यान और योग के माध्यम से आत्मा को शांत करने के तरीकों से अवगत कराया जा रहा है। - वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
अपनी तकनीकी शिक्षा का उपयोग करते हुए, ये संत विज्ञान और आध्यात्मिकता के बीच के संबंध को समझाने की कोशिश कर रहे हैं।
क्यों हैं ये कहानियां प्रेरणादायक?
IIT जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़ाई करने वाले लोग जब आध्यात्म का रास्ता चुनते हैं, तो यह समाज के लिए एक बड़ा संदेश है। यह दिखाता है कि सफलता केवल धन और प्रतिष्ठा में नहीं है, बल्कि आत्मा की संतुष्टि में है।
इन संतों की कहानियां हमें सिखाती हैं कि जीवन के गहरे उद्देश्य को समझना और उसे अपनाना ही सच्ची सफलता है।