महाकुंभ 2025: विदेशी महिलाओं ने अपनाया सनातन धर्म, बनीं संन्यासिनियां

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महाकुंभ 2025, जो आध्यात्मिकता और परंपराओं का महापर्व है, इस बार विदेशी महिलाओं की भागीदारी के लिए खास चर्चा में है। फ्रांस, इटली, और नेपाल की महिलाओं ने सनातन धर्म अपनाते हुए संन्यास की दीक्षा ली और अपने जीवन को आध्यात्मिकता के लिए समर्पित कर दिया। ये महिलाएं भारतीय योग और वैदिक ज्ञान से प्रेरित होकर महाकुंभ के मंच पर नई पहचान के साथ उभरीं।

विदेशी महिलाओं का संन्यास मार्ग

पारंपरिक विधियों के अनुसार दीक्षा

जूना अखाड़े ने इन महिलाओं को गंगा स्नान, मुंडन, और पिंडदान जैसे पवित्र अनुष्ठानों के बाद संन्यास की दीक्षा दी। इस प्रक्रिया के बाद उन्हें उनके आध्यात्मिक नाम दिए गए:

  • मरियम (फ्रांस): अब “कामाख्या गिरि” के नाम से जानी जाएंगी।
  • अंकिया (इटली): अब “शिवानी भारती” के रूप में पहचानी जाएंगी।
  • मौक्षिता राय (नेपाल): उन्हें “मोक्षता गिरि” नाम दिया गया।

दीक्षा के बाद उन्होंने भगवा वस्त्र धारण किए और सांसारिक जीवन को त्याग दिया।

सांसारिक जीवन से वैराग्य का मार्ग

व्यक्तिगत सफर

  1. कामाख्या गिरि (मरियम):
    फ्रांस के कोग्नाक टाउन से आने वाली मरियम पहले एक निजी स्कूल में शिक्षिका थीं। भारत की यात्रा के दौरान योग और वैदिक ज्ञान के संपर्क में आने के बाद उन्होंने सांसारिक जीवन छोड़ने का निर्णय लिया।
  2. शिवानी भारती (अंकिया):
    इटली के वेनिस की अंकिया एक योग शिक्षिका थीं। उनकी यात्रा ने उन्हें भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की गहराइयों में ले जाकर “शिवानी भारती” के रूप में नया जीवन दिया।
  3. मोक्षता गिरि (मौक्षिता राय):
    नेपाल की मौक्षिता राय ने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को “मोक्षता गिरि” नाम के साथ नई पहचान दी।

इन तीनों महिलाओं के साथ 150 अन्य महिलाओं ने भी महाकुंभ के दौरान संन्यास धारण किया।

भारत और सनातन धर्म के प्रति आकर्षण

प्रेरणा का स्रोत

कामाख्या गिरि ने बताया कि सात-आठ साल पहले भारत यात्रा के दौरान भागलपुर में जूना अखाड़े के संत सुरेंद्र गिरि से उनकी मुलाकात हुई। योग और वैदिक ज्ञान की गहराइयों ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि वे सांसारिक सुखों से विमुख होकर अध्यात्म की ओर बढ़ गईं।

महाकुंभ का महत्व

महाकुंभ को उन्होंने संन्यास के लिए उपयुक्त स्थान माना, क्योंकि यह आध्यात्मिक ऊर्जा और ज्ञान का केंद्र है।

आध्यात्मिक संतुष्टि का अनुभव

शिवानी भारती ने अपने संन्यास के अनुभव साझा करते हुए कहा:
“संन्यास के बाद मुझे आंतरिक संतोष और शांति का अनुभव हुआ। अब मेरा जीवन योग और वैदिक ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है।”

इन संन्यासिनियों ने गुरु-शिष्य परंपरा का पालन करते हुए सनातन धर्म के विस्तार और वैदिक परंपराओं को बढ़ावा देने का संकल्प लिया।

महाकुंभ का वैश्विक प्रभाव

महाकुंभ 2025 ने दिखाया कि भारतीय संस्कृति, योग, और आध्यात्मिकता न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को आकर्षित कर रही है।

  • फ्रांस, इटली, और नेपाल का प्रतिनिधित्व:
    इन देशों से महिलाओं का सनातन धर्म में दीक्षित होना भारतीय परंपराओं के बढ़ते वैश्विक प्रभाव का प्रमाण है।
  • योग और वैदिक ज्ञान का प्रसार:
    इन महिलाओं ने योग और वैदिक ज्ञान को अपनी जीवन साधना का हिस्सा बनाते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने का निर्णय लिया।

महाकुंभ: एक वैश्विक जागरूकता का केंद्र

महाकुंभ ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा मंच है जो भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के वैश्विक प्रभाव को बढ़ावा देता है।