स्टीव जॉब्स का नाम लेते ही तकनीकी क्रांति और एपल कंपनी की कहानी हमारे जेहन में आ जाती है। लेकिन उनकी पत्नी, लॉरेन पॉवेल जॉब्स, भी अध्यात्म से गहरी जुड़ाव रखने वाली एक जानी-मानी हस्ती हैं। इस बार महाकुंभ 2025 में लॉरेन संगम तट पर डुबकी लगाकर और कल्पवास करके भारतीय परंपरा और अध्यात्म का अनुभव करेंगी।
लॉरेन पॉवेल, जो 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ में शामिल होंगी, 10 दिनों तक श्रीनिरंजनी अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरि के शिविर में रहेंगी।
अध्यात्म में डूबेगी लॉरेन पॉवेल की यात्रा
महाकुंभ के दौरान लॉरेन पॉवेल साधुओं की संगत में रहेंगी और सादगीपूर्ण जीवन बिताएंगी।
- आध्यात्मिक गुरु स्वामी कैलाशानंद जी महाराज ने बताया कि लॉरेन का नया नाम कमला रखा गया है।
- उन्होंने कहा:
“वह हमारी बेटी की तरह हैं। हमने उन्हें नया नाम और गोत्र दिया है। यह उनकी दूसरी भारत यात्रा है और वह यहां अपने गुरु से मिलने आ रही हैं।”
- लॉरेन पूजा, ध्यान और तप साधना में हिस्सा लेंगी।
स्वामी जी का विचार:
उन्होंने यह भी कहा कि लॉरेन को अखाड़े की पेशवाई में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा, हालांकि यह पूरी तरह लॉरेन की इच्छा पर निर्भर करेगा।
जॉब्स परिवार और भारत का अध्यात्मिक नाता
- स्टीव जॉब्स का भारतीय अध्यात्म से गहरा लगाव था।
- 1970 के दशक में वह सात महीने के लिए भारत आए और नैनीताल स्थित कैंची धाम में बाबा नीम करौली महाराज के शिष्य बने।
- लॉरेन पॉवेल भी हिंदू और बौद्ध धर्म से जुड़ी रहती हैं और धार्मिक आयोजनों में भाग लेती हैं।
क्या है कल्पवास?
कल्पवास महाकुंभ में की जाने वाली एक पवित्र साधना है। इसमें श्रद्धालु संगम के तट पर रहते हुए साधना, ध्यान और धार्मिक कार्यों में समय व्यतीत करते हैं।
- मान्यता:
कल्पवास करने से पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है। - शर्तें:
- तीन बार गंगा स्नान।
- सादा भोजन।
- ध्यान और वेदों का अध्ययन।
- ब्रह्मचर्य का पालन।
महाकुंभ और कल्पवास का महत्व
- यह माना जाता है कि महाकुंभ के दौरान गंगा में स्नान करने से 10,000 अश्वमेघ यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।
- यह परंपरा कई परिवारों में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती आ रही है।
- कल्पवास एक कठिन तपस्या है, लेकिन इसे करने से मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
कल्पवास के नियम
कल्पवास के दौरान कठोर नियमों का पालन किया जाता है:
- सादा भोजन: केवल शुद्ध और साधारण भोजन किया जाता है।
- कम निद्रा: कम सोने की परंपरा है।
- संगम स्नान: रोजाना संगम में स्नान करना अनिवार्य है।
- वेदों का अध्ययन: धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन और उनका पालन।
- ध्यान और सत्संग: नियमित ध्यान और सत्संग में भाग लेना।
- दान और पुण्य: पितरों का पिंडदान और समाज कल्याण के लिए दान।
- ब्रह्मचर्य का पालन: जीवन में संयम और साधना।
महाकुंभ में लॉरेन की भागीदारी का महत्व
लॉरेन पॉवेल का महाकुंभ में शामिल होना भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता की वैश्विक पहचान को बढ़ावा देगा।
- उनकी यात्रा यह संदेश देती है कि भारतीय परंपराओं का प्रभाव न केवल देश के भीतर, बल्कि पूरी दुनिया में फैला हुआ है।