देश की 88 सीटों पर लोकसभा चुनाव हो रहे हैं. वैसे तो लोकसभा चुनाव में बिहार का खास महत्व है, लेकिन आपको बता दें कि यहां की 17 सीटों पर मुस्लिम वोटों का दबदबा है.
बिहार का सीमांचल क्षेत्र आमतौर पर मुस्लिम बहुल माना जाता है। लेकिन बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से लगभग आधी यानी 17 सीटों पर मुस्लिम मतदाता किंगमेकर की भूमिका में हैं.
किशनगंज में मुस्लिम मतदाता बहुसंख्यक हैं. लेकिन तीन सीटें ऐसी भी हैं जहां उनकी आबादी एक तिहाई से ज्यादा है. मुस्लिम मतदाताओं के वोटिंग पैटर्न पर नजर डालने से पता चलता है कि वे ज्यादातर एकतरफा वोटिंग के लिए जाने जाते हैं। इसलिए वह जिस पार्टी के साथ जाते हैं उसका पलड़ा भारी रहता है।
किशनगंज में लगभग 68 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं
बिहार की एक चौथाई या 10 लोकसभा सीटें जहां मुसलमानों की आबादी 18% से अधिक है। सबसे ज्यादा यानी करीब 68 फीसदी वोटर किशनगंज में हैं. 1967 के बाद ऐसा कोई चुनाव नहीं हुआ जिसमें कोई गैर-मुस्लिम सांसद चुना गया हो। यहां की छह विधानसभाओं के सभी विधायक भी मुस्लिम हैं.
कटिहार, पूर्णिया में भी मुस्लिम वोटरों का बाहुल्य है, अररिया
दूसरा सबसे ज्यादा यानी करीब 43% मुस्लिम वोटर वाला क्षेत्र है। यहां से 6 बार मुस्लिम सांसद चुने गए हैं और मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी तारिक अनवर 5 बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
अररिया सीट पर 42 फीसदी मुस्लिम वोटर
अररिया सीट पर भी करीब 42 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. 2014 में यहां राजद के मुस्लिम उम्मीदवार तस्लीमुद्दीन ने जीत हासिल की थी. पूर्णिया में भी एक तिहाई से ज्यादा वोटर मुस्लिम हैं. यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या करीब 38 फीसदी है. हालांकि, इस बार चुनाव मैदान में कोई बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं है.
मिथिलांचल की मधुबनी सीट पर भी करीब 26 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं और अब तक यहां से 4 बार मुस्लिम उम्मीदवार जीत चुका है. इस बार राजद ने दरभंगा से अपने पूर्व सांसद अली अशरफ फातमी को टिकट दिया है.
बीजेपी ने यहां से मौजूदा सांसद अशोक यादव को अपना उम्मीदवार बनाया है. मधुबनी में कोट, बिस्फी, मधुबनी और हरलाखी मुस्लिम बहुल विधानसभा क्षेत्र हैं।
मिथिलांचल के दरभंगा में भी करीब 23 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं. इस सीट से 6 बार मुस्लिम उम्मीदवार जीत चुका है. बीजेपी ने निवर्तमान सांसद गोपालजी ठाकुर को मैदान में उतारा है जबकि राजद ने ललित यादव पर दांव लगाया है.
मिथिलांचल की सीतामढी सीट पर मुसलमानों की आबादी करीब 21 फीसदी है. लेकिन अभी तक इस सीट से कोई भी मुस्लिम उम्मीदवार नहीं जीत सका है. मंडल राजनीति के बाद यह सीट लालू यादव की पार्टी का गढ़ बन गई. लेकिन अब यहां एनडीए का सिक्का चल रहा है.
इस बार जदयू ने यहां से देवेश चंद्र ठाकुर को मैदान में उतारा है, जबकि राजद ने पूर्व सांसद अर्जुन राय पर दांव लगाया है.
चंपारण सीट पर मुस्लिम वोट अहम
2008 में परिसीमन के कारण बेतिया सीट पश्चिमी चंपारण हो गई और यहां भी 20 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम हैं. बेतिया से एक मुस्लिम उम्मीदवार दो बार जीत चुका है. लेकिन अब ये बीजेपी का गढ़ बन गया है.
परिसीमन से पहले पूर्वी चंपारण भी मोतिहारी था, जहां लगभग 21% मुलमान हैं। हालांकि, यहां से अब तक किसी भी मुस्लिम उम्मीदवार की किस्मत नहीं चमकी है. बीजेपी ने मौजूदा सांसद राधामोहन सिंह को और इंडिया ब्लॉक ने राजेश कुशवाह को मैदान में उतारा है.
सीवान सीट पर मुस्लिमों का दबदबा
सीवान लोकसभा सीट पर महज 18 फीसदी मुस्लिम आबादी होने के बावजूद एक मुस्लिम उम्मीदवार को 9 बार निर्वाचित होने का मौका मिला है. कुख्यात अपराधी शहाबुद्दीन को चार बार राजद से चुनाव जीतने का मौका मिला। इस बार जदयू ने रमेश कुशवाहा और राजद ने अवध बिहार चौधरी को टिकट दिया है.
इन सात सीटों पर भी किंगमेकर की भूमिका में हैं मुस्लिम
उपरोक्त 10 सीटों के अलावा बिहार की 7 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम आबादी 13 से 17 फीसदी के बीच है. गोपालगंज (17%), सुपौल (17%), शिवहर (16%), मुजफ्फरपुर (15%), खगड़िया (15%), बेगुसराय (14%) और गया (13%) में प्रतिशत वोट हैं।