Liberation from the cycle of birth and death: प्रेमानंद महाराज ने बताया शुद्ध भाव का महत्व, 84 लाख योनियों से निकलने का रहस्य
News India Live, Digital Desk: वृंदावन की पावन भूमि पर श्री प्रेमानंद महाराज जी के प्रवचन लाखों श्रद्धालुओं के लिए ज्ञान और शांति का स्रोत हैं। उनके सत्संग में अक्सर भक्त ऐसे गहन प्रश्न पूछते हैं, जिनका उत्तर महाराज जी बड़ी सहजता और गहराई से देते हैं। हाल ही में एक भक्त ने महाराज जी से वह महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा, जो अक्सर आध्यात्मिक साधकों को विचलित करता है: "महाराज जी, मनुष्य कब इस 84 लाख योनियों के भटकने के कष्टकारी चक्र से मुक्त होता है?"
इस गंभीर प्रश्न के उत्तर में श्री प्रेमानंद महाराज जी ने समझाया कि यह आवागमन का चक्र केवल सच्चा भजन और हरि की निःस्वार्थ सेवा करने से रुकता है। उन्होंने इस बात पर विशेष जोर दिया कि बाहरी कर्मकांडी भजन या सेवा ही पर्याप्त नहीं है; उसके पीछे शुद्ध 'भाव' का होना अत्यंत आवश्यक है। महाराज जी ने बताया कि यदि कोई भक्त शुद्ध हृदय से भगवान के नाम का जप करता है या किसी संत को एक गिलास पानी भी पूरी श्रद्धा और प्रेम से देता है, तो वही सच्चा 'भाव' है।
महाराज जी ने कहा कि बिना 'भाव' के किया गया भजन या सेवा केवल शारीरिक क्रिया है। इससे मुक्ति नहीं मिलती, क्योंकि मन और आत्मा का जुड़ना ही महत्वपूर्ण है। जब साधक का अंतःकरण (मन और बुद्धि का सामूहिक स्वरूप) पूरी तरह से प्रभु और उनके भक्तों की सेवा में लीन हो जाता है, जब उसे किसी फल की इच्छा नहीं रहती, तभी वह इस 84 लाख योनियों के आवागमन के कष्टकारी चक्र से मुक्ति पा लेता है। उन्होंने जोर देकर कहा, "भूल भी जाना, हरि से प्रीति मत छोड़ना।"
महाराज जी ने भक्त ध्रुव और प्रहलाद का उदाहरण दिया। उन्होंने समझाया कि इन भक्तों को अनेक जन्म नहीं लेने पड़े, क्योंकि उनका 'भाव' शुद्ध और निर्विवाद था। यदि मनुष्य के मन में परमात्मा को पाने की सच्ची लालसा जाग जाए और वह पूरी तरह से प्रभु की इच्छा के प्रति समर्पित हो जाए, तो परमात्मा उसे अपना सेवक बनाकर अपने धाम में ही निवास देते हैं। जब तक 'भाव' की कमी होती है, तभी तक आत्मा इस जन्म-मृत्यु के चक्र में भटकती रहती है। यही परमात्मा से मिलन और मोक्ष का अंतिम रहस्य है।
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