बिहार भूमि रजिस्ट्री: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जिले के उप निबंधन कार्यालयों में जमीन दस्तावेजों के निबंधन में तेजी आ गयी है. अब निबंधन कार्यालयों में वीरानी की जगह रौनक लौट आयी है. सोमवार को पहले ही दिन पांचों निबंधन कार्यालय बेतिया, चनपटिया, लौरिया, नरकटियागंज व बगहा में 514 से अधिक लोगों ने अपनी जमीन की रजिस्ट्री करायी.
आंकड़ों पर गौर करें तो जमीन की रजिस्ट्री कराने में हर कार्यालय ने औसतन एक शताब्दी लगा दी है. जिला अवर निबंधक अमरेंद्र कुमार ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने पुराने नियम के अनुसार निबंधन करने का आदेश दिया है, जिसमें जमीन के मालिक के नाम पर जमाबंदीदार की अनिवार्यता समाप्त कर दी गयी है. अब जमाबंदीदारों की जमीन को भू-धारी अपने पूर्वजों के नाम पर दर्ज करा सकेंगे.
आंकड़ों पर गौर करें तो बेतिया निबंधन कार्यालय में जमीन निबंधन कराने वालों ने 106 स्लॉट बुक किये हैं. जबकि चनपटिया में 101, लौरिया में 101, नरकटियागंज में 104 और बगहा में 102 लोगों ने स्टॉट बुक कराये हैं. कार्यालय सूत्र के अनुसार पुरानी नियमावली के तहत जमीन का निबंधन होने से स्टाॅट बुक होने की संख्या बढ़ेगी. जिससे राजस्व भी बढ़ेगा.
हाईकोर्ट ने 22 फरवरी को रोक लगा दी थी
22 फरवरी को हाई कोर्ट ने ऐसी जमीनों की रजिस्ट्री पर रोक लगा दी थी जिनके नाम पर जमीन रजिस्टर्ड नहीं थी. आदेश के अनुसार केवल वही जमीन बेच सकता था। इसका मतलब यह है कि जिस व्यक्ति का नाम अंचल कार्यालय में रजिस्टर 2 में दर्ज होगा. आप वहां की जमीन बेच सकते हैं. अब दूसरे लोगों द्वारा बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
नये नियम को लागू करने का आदेश हाइकोर्ट के निर्देश पर उप निबंधन महानिरीक्षक मनोज कुमार संजय ने दिया है. चर्चा थी कि आने वाले दिनों में इस नियम का लाभ मिलेगा और भूमि विवादों में भारी कमी आयेगी. जिसके बाद निबंधन कार्यालयों में जमीन निबंधन के लिए स्लॉट की बुकिंग में काफी कमी आ गयी. राजस्व की भी हानि हो रही थी.
अब ज़मीन जमाकर्ताओं के नाम पर होने की आवश्यकता नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाइकोर्ट के आदेश पर रोक लगाये जाने के बाद फिलहाल जमाबंदीदारों के नाम पर जमीन होने की अनिवार्यता समाप्त हो गयी है. अब कोई भी अपने पूर्वजों के नाम पर जमीन बेच सकता है. ऐसे में भू-माफियाओं की ताकतें फिर सामने आ जाएंगी।
अब वे जमाबंदीदारों के वंशजों व रिश्तेदारों से जमीन खरीद-बिक्री का काम शुरू करेंगे, जबकि तीन माह पहले हाइकोर्ट के आदेश के बाद उनकी सक्रियता कम हो गयी थी. भू-धारियों को काफी राहत मिली.