नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग से बलात्कार के एक पोक्सो मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणी की कड़ी आलोचना करते हुए इसे अत्यंत असंवेदनशील और अमानवीय बताया है। साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हाईकोर्ट के जज की इस टिप्पणी पर रोक लगा दी थी। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा था कि नाबालिग के स्तनों को पकड़ना या उसके पायजामे का किनारा फाड़ना बलात्कार का प्रयास नहीं माना जाएगा। न्यायाधीश की इस टिप्पणी की कड़ी आलोचना हुई और सुप्रीम कोर्ट के कुछ वरिष्ठ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखकर उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए. जी. मसीह की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का स्वत: संज्ञान लिया और मामले की सुनवाई शुरू की। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हमने फैसला पढ़ा है, जिसमें हमें बड़े अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि पैराग्राफ 21, 24 और 26 में जज द्वारा की गई टिप्पणियों में संवेदनशीलता की कमी दिखती है। उच्च न्यायालय का यह फैसला तत्काल नहीं आया बल्कि चार महीने बाद आया। पीठ ने कहा कि इसलिए यह स्पष्ट है कि न्यायाधीश ने अपने दिमाग का अच्छा इस्तेमाल करके यह फैसला सुनाया है। चूंकि इस निर्णय में की गई टिप्पणी अत्यधिक आपत्तिजनक और असंवेदनशील है, इसलिए न्यायाधीश द्वारा की गई टिप्पणी पर रोक लगाई जाती है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और हाईकोर्ट के सभी पक्षों को नोटिस जारी किया है। अदालत में मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि हाईकोर्ट का यह फैसला वाकई चौंकाने वाला है। उन्होंने कहा कि कुछ निर्णय ऐसे हैं जिन पर रोक लगाने के लिए वैध कारण हैं।
बाद में मौखिक टिप्पणी करते हुए जस्टिस गवई ने कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है, जज की ओर से पूरी तरह असंवेदनशीलता दिखाई गई, जज के खिलाफ ऐसे कठोर शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए हमें खेद है, लेकिन वास्तव में अमानवीय रवैया अपनाया गया है। बाद में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि हां, मैं सहमत हूं, यह बहुत गंभीर मामला है, हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को मास्टर ऑफ रोस्टर के तौर पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए। इससे पहले वरिष्ठ महिला वकील शोभा गुप्ता ने मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को पत्र लिखा था, जिसके मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले का स्वत: संज्ञान लिया था। उल्लेखनीय है कि नाबालिग से दुष्कर्म के एक मामले में आरोपी की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी, जिस पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट के जज राम मनोहर मिश्रा ने विवादित टिप्पणी की थी, उन्होंने कहा कि जांच रिपोर्ट और अन्य दस्तावेजों पर गौर करें तो ऐसा लगता है कि यह मामला दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का नहीं है, पीड़िता के निजी अंगों को छूना या उसके पायजामे का फीता तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म के प्रयास का मामला नहीं माना जा सकता। बलात्कार का प्रयास करने और उसके लिए तैयारी करने में अंतर है। यह पूरा मामला उत्तर प्रदेश के कासगंज का है, जहां साल 2021 में एक नाबालिग लड़की की मां ने शिकायत की थी कि कुछ लोगों ने उसके साथ दुष्कर्म किया है।