JSSC परीक्षा कैलेंडर पर उठा विवाद: युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़?

 JSSC परीक्षा कैलेंडर पर उठा विवाद: युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़?
JSSC परीक्षा कैलेंडर पर उठा विवाद: युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़?

झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) एक बार फिर विवादों में है, और इस बार वजह है इसका हाल ही में जारी किया गया परीक्षा कैलेंडर। आयोग पर पहले भी पारदर्शिता की कमी और देरी जैसे आरोप लगते रहे हैं, लेकिन इस बार मामला और गंभीर है। जो शेड्यूल जारी हुआ है, उसने छात्रों को भ्रमित कर दिया है, और विपक्ष को सरकार पर हमला करने का एक और मौका मिल गया है।

अजीबो-गरीब टाइमटेबल ने उड़ाए होश

JSSC द्वारा शुक्रवार की शाम को जारी किए गए नए परीक्षा कैलेंडर में ऐसी गलती सामने आई, जिसने लाखों अभ्यर्थियों के बीच नाराजगी फैला दी। परीक्षा तो नवंबर 2025 में होनी है, लेकिन उसका परिणाम फरवरी 2025 में जारी करने की बात कही गई है! मतलब, परीक्षा से पहले ही रिजल्ट आ जाएगा? ये तो “टाइम ट्रैवल” से भी आगे की बात हो गई।

इस चूक के बाद से छात्र खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर लोग सरकार की जमकर आलोचना कर रहे हैं। कुछ उम्मीदवारों ने तो तंज कसते हुए लिखा कि “सरकार भविष्य में नहीं, अतीत में नौकरी दे रही है।”

विपक्ष ने बोला हमला, सरकार को घेरा

भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी ने इस चूक को लेकर सीधा हमला बोला। उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा, “हेमंत सोरेन जी शायद टाइम ट्रैवल कर भूतकाल में नौकरी देने की योजना बना रहे हैं।” उनका आरोप है कि यह कैलेंडर सिर्फ खानापूर्ति के लिए लाया गया है, ताकि सरकार की रोजगार पर विफलता छुपाई जा सके।

उन्होंने यह भी कहा कि अगर सरकार को पांच साल भी लग जाएं एक सही कैलेंडर बनाने में, तब भी चलेगा, लेकिन इस तरह युवाओं की भावनाओं से खेलना शर्मनाक है।

JSSC की कार्यप्रणाली पर फिर उठे सवाल

यह पहली बार नहीं है जब JSSC की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हों। इससे पहले भी परीक्षाओं में अनावश्यक देरी, परीक्षा तिथियों में बार-बार बदलाव, और परिणामों की घोषणा में पारदर्शिता की कमी पर लोग सवाल उठाते रहे हैं।

इस बार की गलती ने फिर यह साबित कर दिया कि आयोग के कामकाज में गंभीर लापरवाहियां हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की गलतियां न सिर्फ छात्रों को भ्रमित करती हैं, बल्कि आयोग की साख पर भी बट्टा लगाती हैं।

छात्रों में गुस्सा, भविष्य पर चिंता

छात्रों में इस समय भारी असमंजस की स्थिति है। जिन प्रतियोगी छात्रों ने सालों की मेहनत इस परीक्षा में लगा दी है, वे अब भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं। सोशल मीडिया पर छात्रों ने कहा कि सरकार उनके भविष्य के साथ मज़ाक कर रही है।

कई छात्र यह भी पूछ रहे हैं कि जब परीक्षा की तारीख ही तय नहीं है, तो परिणाम की तारीख तय करने का क्या मतलब है? यह न सिर्फ तकनीकी चूक है, बल्कि यह युवाओं के सपनों और उम्मीदों के साथ भी एक बड़ा मज़ाक है।

सरकार की मंशा पर सवाल

विपक्ष और छात्रों की नाराजगी के बीच अब सवाल उठ रहे हैं कि क्या राज्य सरकार इस गलती को सुधारने के लिए कोई ठोस कदम उठाएगी? या फिर ये मामला भी अन्य मुद्दों की तरह समय के साथ दबा दिया जाएगा?

फिलहाल तो स्थिति यही है कि राज्य के लाखों प्रतियोगी छात्र एक बार फिर से सरकारी व्यवस्था की लापरवाही का शिकार हो गए हैं।

6. मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर JSSC की आलोचना

JSSC द्वारा जारी इस गड़बड़ परीक्षा कैलेंडर ने सोशल मीडिया पर जैसे आग लगा दी। Twitter (अब X), Facebook और Instagram पर छात्रों और आम नागरिकों ने आयोग की तीखी आलोचना की। हजारों पोस्ट और मीम्स सामने आए, जिनमें सरकार की कार्यप्रणाली पर तंज कसे गए। कई छात्रों ने फेसबुक ग्रुप्स और फोरम्स में साझा किया कि उन्हें अब सरकारी परीक्षाओं पर भरोसा नहीं रहा।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक मीम में लिखा था, “JSSC: जहाँ पहले रिजल्ट आता है और बाद में परीक्षा होती है।” इससे साफ पता चलता है कि लोग इस चूक को हल्के में नहीं ले रहे हैं। Instagram पर कई यूथ इन्फ्लुएंसर्स ने भी अपनी स्टोरीज और रील्स के ज़रिए सरकार की खिंचाई की, जिससे युवाओं की नाराजगी और तेज़ हो गई।

यूट्यूब पर भी कई एजुकेशन चैनल्स ने लाइव सेशंस और वीडियो एनालिसिस कर इस मुद्दे को उठाया। इससे यह मामला एक गंभीर जनविरोध में बदल गया, जो सिर्फ JSSC तक सीमित नहीं रहा, बल्कि सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाने लगा।

7. JSSC की चुप्पी और सरकार की प्रतिक्रिया

JSSC की इस बड़ी गलती के बाद भी आयोग की ओर से कोई आधिकारिक बयान तुरंत नहीं आया। यह चुप्पी और भी खतरनाक सिद्ध हुई, क्योंकि छात्रों और जनता को लगा कि सरकार और आयोग इस मुद्दे को नजरअंदाज कर रहे हैं। जब मामला मीडिया और सोशल मीडिया में बढ़ गया, तब जाकर सरकार की तरफ से कुछ बयानों की खानापूर्ति की गई।

राज्य सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि यह एक “प्रिंटिंग मिस्टेक” है, और जल्द ही संशोधित कैलेंडर जारी किया जाएगा। लेकिन युवाओं ने इस जवाब को खारिज कर दिया और कहा कि इतने गंभीर स्तर की गलती को “टाइपो” कहना जनता की बुद्धि का अपमान है। अगर यह गलती सच में टाइपो थी, तो उसे समीक्षा किए बिना सार्वजनिक कैसे कर दिया गया?

यहां यह भी सवाल उठता है कि क्या सरकार और आयोग के बीच समन्वय की कमी है? या फिर वाकई में इस प्रकार की गलतियां सरकार की जल्दबाज़ी और लापरवाही का नतीजा हैं? जवाब जो भी हो, नुकसान छात्रों और उनके करियर का हो रहा है।

8. रोजगार को लेकर सरकार की साख पर असर

झारखंड जैसे राज्य में जहाँ युवाओं के लिए नौकरियाँ वैसे ही कम हैं, ऐसे में JSSC जैसी संस्थाओं की ज़िम्मेदारी और बढ़ जाती है। लेकिन इस हालिया घटना ने सरकार की साख को बुरी तरह प्रभावित किया है। विपक्ष पहले से ही सरकार को बेरोजगारी के मुद्दे पर घेर रहा था, और अब ये मामला उनके हाथ में एक नया हथियार बन गया है।

रोजगार को लेकर राज्य में जो थोड़ी बहुत उम्मीदें थी, वो भी इस घटना से और कमज़ोर हो गई हैं। खासकर ग्रामीण इलाकों से आने वाले छात्र जो वर्षों से तैयारी कर रहे हैं, उन्हें अब सरकार की नीयत पर संदेह हो रहा है। उन्हें लग रहा है कि सरकार सिर्फ चुनावी फायदे के लिए घोषणाएं करती है, लेकिन ज़मीन पर कुछ नहीं होता।

यह मुद्दा अब सिर्फ एक गलती नहीं रहा, यह सरकार की नीतियों और प्राथमिकताओं पर सवाल बन चुका है। और जब तक सरकार इसपर कठोर कदम नहीं उठाती, तब तक जनता का विश्वास वापस पाना मुश्किल है।

9. छात्रों की मानसिक स्थिति पर प्रभाव

इस घटना ने सिर्फ सरकारी व्यवस्था पर नहीं, बल्कि छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डाला है। जो छात्र दिन-रात मेहनत कर रहे थे, उन्हें अब लग रहा है कि उनकी सारी मेहनत बर्बाद हो गई। अनिश्चितता, असमंजस और चिंता का माहौल बन गया है।

कई अभ्यर्थियों ने सोशल मीडिया पर खुल कर लिखा कि वो डिप्रेशन में हैं और उन्हें आगे की योजना समझ नहीं आ रही। जब एक युवा को ये भरोसा ही ना हो कि सरकार की परीक्षा प्रणाली सही है, तो उसका मनोबल टूटना स्वाभाविक है।

मनोवैज्ञानिक भी मानते हैं कि इस तरह की घटनाएं छात्रों के आत्मविश्वास को तोड़ देती हैं। इससे आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाने की संभावना भी बढ़ जाती है, जो बेहद चिंताजनक है। ऐसे में सरकार को सिर्फ गलती मानना ही नहीं, बल्कि छात्रों की भावनाओं की भरपाई करने के लिए कदम भी उठाने चाहिए।

10. क्या JSSC की जवाबदेही तय की जाएगी?

सबसे बड़ा सवाल यही है—क्या JSSC इस गलती के लिए ज़िम्मेदार लोगों पर कोई कार्रवाई करेगा? क्या उच्च स्तर पर बैठने वाले अधिकारी इस बात की जवाबदेही लेंगे? या फिर यह मामला भी उन हजारों मामलों की तरह दबा दिया जाएगा, जहाँ गलती होती है, लेकिन किसी को सज़ा नहीं मिलती?

अगर सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती, तो यह भविष्य में और बड़ी समस्याएं पैदा कर सकता है। इससे न केवल छात्रों का विश्वास टूटेगा, बल्कि सरकारी संस्थाओं की विश्वसनीयता भी खत्म हो जाएगी।

एक लोकतांत्रिक राज्य में यह ज़रूरी है कि जनता की समस्याओं को सुना जाए और उनपर कार्रवाई हो। यदि JSSC को सही मायनों में सुधारना है, तो उसे पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे।