जितिया व्रत 2025: क्या है 'ओठगन' की रस्म? जानें इसके बिना क्यों अधूरा माना जाता है ये महाव्रत

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संतान की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए रखा जाने वाला जितिया (जीवित्पुत्रिका) व्रत आज से शुरू हो गया है. यह हिन्दू धर्म के सबसे कठिन व्रतों में से एक है, जिसमें माताएं लगभग 36 घंटों तक बिना कुछ खाए-पिए (निर्जला) रहती हैं. इस कठिन तपस्या की शुरुआत एक बहुत ही खास और महत्वपूर्ण रस्म से होती है, जिसे 'ओठगन' कहा जाता है.

जैसे करवा चौथ में 'सरगी' का महत्व होता है, ठीक वैसे ही जितिया में 'ओठगन' की रस्म निभाई जाती है. यह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि इस कठिन व्रत को पूरा करने के लिए शरीर को तैयार करने की एक प्रक्रिया भी है. आइए जानते हैं, क्या है यह रस्म और इसका इतना महत्व क्यों है.

क्या होता है ओठगन?

'ओठगन' व्रत शुरू होने से ठीक पहले, यानी सूर्योदय से पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में किया जाने वाला भोजन है. अष्टमी तिथि लगने के बाद महिलाएं स्नान-ध्यान करके पूजा करती हैं और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं. यही भोजन 'ओठगन' कहलाता है. इसके बाद से पारण के दिन तक, वे पानी की एक बूंद भी ग्रहण नहीं करती हैं.

यह एक तरह से व्रत का संकल्प लेने से पहले शरीर को ऊर्जा देने की एक विधि है, ताकि मां को दिनभर भूखे-प्यासे रहने की शक्ति मिल सके.

इस रस्म में क्या खाया जाता है?

ओठगन की थाली बहुत खास होती है, जिसे ज्यादातर सास अपनी बहू को बनाकर देती हैं. अगर सास नहीं हैं, तो घर की कोई बड़ी महिला या मां खुद इसे करती हैं. इस थाली में ऐसी चीजों को शामिल किया जाता है, जो स्वादिष्ट भी हों और दिन भर शरीर को ऊर्जा भी दे सकें.

  • मुख्य भोजन: आमतौर पर इसमें मड़ुआ (रागी) के आटे की रोटी और नोनी का साग खाया जाता है. इसके अलावा, कद्दू या तोरी की सब्जी भी बनती है.
  • मिठाई: मिठाई के रूप में जलेबी खाने की परंपरा काफी प्रचलित है.
  • दही-चूड़ा: कई जगहों पर दही-चूड़ा और मिठाई खाकर भी इस रस्म को पूरा किया जाता है.

यह भोजन करने के बाद महिलाएं मुंह धो लेती हैं और फिर उनके कठोर व्रत की शुरुआत हो जाती है.

यह परंपरा न केवल शरीर को शक्ति प्रदान करती है, बल्कि परंपराओं को पीढ़ी-दर-पीढ़ी जीवित भी रखती है। यह सास-बहू के बीच प्रेम और सम्मान का प्रतीक भी है।

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