झारखंड का हक या सियासत? 28 हजार करोड़ के बकाये पर विधानसभा में गूंजी वित्त मंत्री की दहाड़
News India Live, Digital Desk : झारखंड विधानसभा के शीतकालीन सत्र (Winter Session) में कुछ ऐसा ही दर्द छलक कर बाहर आया है। राज्य सरकार ने ऐलान किया है कि वो बाजार से 16,800 करोड़ रुपये का कर्ज लेगी। यह रकम छोटी नहीं है, और जाहिर है इस पर सवाल उठने थे। लेकिन सरकार ने जो जवाब दिया है, उसने केंद्र और राज्य के रिश्तों की कड़वाहट को फिर से जगजाहिर कर दिया है।
"हमें सौतेला बेटा समझा जा रहा है"
सदन में वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर ने बड़े ही तल्ख अंदाज में अपनी बात रखी। उन्होंने साफ कहा कि केंद्र सरकार झारखंड के साथ नाइंसाफी कर रही है। सरकार का दावा है कि केंद्र के पास राज्य का हजारों करोड़ रुपया फंसा हुआ है।
जरा इन आंकड़ों पर गौर कीजिये जो मंत्री जी ने बताए:
- केंद्रीय करों में हिस्सेदारी: मिलनी थी करीब 47,000 करोड़, लेकिन मिले सिर्फ 31,000 करोड़ के आसपास।
- ग्रांट (अनुदान): उम्मीद थी 17,000 करोड़ की, लेकिन हाथ आए सिर्फ 4,800 करोड़।
कुल मिलाकर, सरकार का कहना है कि अगर केंद्र हमारा 28,000 करोड़ से ज्यादा का बकाया दे देता, तो हमें आज बाजार से ब्याज पर पैसा नहीं उठाना पड़ता।
आम जनता के लिए क्या है इसमें?
अब आप सोच रहे होंगे कि सरकार लोन ले या न ले, हमें क्या? आपको फर्क पड़ता है, क्योंकि सरकार ने जो 7,721 करोड़ रुपये का दूसरा अनुपूरक बजट पास किया है, वो सीधा आपकी जेब से जुड़ा है।
इस बजट में सबसे ज्यादा फोकस 'समाज कल्याण' पर है।
- मंईयां सम्मान योजना: महिलाओं के खाते में जो पैसे आ रहे हैं, वो नहीं रुकेंगे।
- पेंशन और राशन: बुजुर्गों और गरीबों की योजनाओं के लिए पैसे का इंतजाम कर लिया गया है।
सरकार का मैसेज क्लियर है केंद्र पैसा दे या न दे, हम अपनी लोकप्रिय योजनाएं बंद नहीं होने देंगे, चाहे इसके लिए लोन ही क्यों न लेना पड़े।
आगे की राह क्या है?
विपक्ष इसे 'वित्तीय कुप्रबंधन' (Financial Mismanagement) बता रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इसे 'हक की लड़ाई' कह रहा है। सच जो भी हो, लेकिन इतना तय है कि आने वाले दिनों में झारखंड की राजनीति में 'केंद्र का बकाया' एक बहुत बड़ा मुद्दा बनने वाला है।
फिलहाल तो सरकार ने लोन लेकर अपनी गाड़ी आगे बढ़ा दी है, लेकिन यह कर्ज भविष्य में राज्य की अर्थव्यवस्था पर कितना भारी पड़ेगा, यह तो वक्त ही बताएगा।
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