Jharkhand News : सारंडा नेटवर्क हुआ ध्वस्त नक्सली हिड़मा के खात्मे की खबर से सुरक्षाबलों ने ली राहत की सांस
News India Live, Digital Desk : नक्सल प्रभावित इलाकों, खासकर झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा बॉर्डर के लिए आज एक बहुत बड़ी और राहत देने वाली खबर सामने आ रही है। अगर आप 'लाल आतंक' के इतिहास को जानते हैं, तो 'माडवी हिड़मा' (Madvi Hidma) नाम सुनते ही रौंगटे खड़े हो जाते थे। वह सुरक्षाबलों के लिए सिरदर्द नहीं, बल्कि 'मोस्ट वांटेड' चुनौती था।
ताज़ा ख़बरों के मुताबिक़, आंध्र प्रदेश पुलिस (Andhra Pradesh Police) और सुरक्षाबलों के एक जबरदस्त जॉइंट ऑपरेशन में इस खूंखार नक्सली कमांडर के मारे जाने की सूचना है। अगर यह खबर पूरी तरह कन्फर्म होती है, तो मान लीजिये कि यह पिछले दो दशकों में नक्सलियों को लगा सबसे गहरा जख्म है।
आइए, आसान भाषा में समझते हैं कि हिड़मा कौन था और उसके जाने से झारखंड के सारंडा (Saranda) जंगल पर क्या असर पड़ेगा।
कौन था माडवी हिड़मा? (Who was Madvi Hidma?)
हिड़मा कोई आम नक्सली नहीं था। वह सीपीआई (माओवादी) की बटालियन नंबर 1 का कमांडर था। उसे गुरिल्ला वॉर (छिपकर हमला करने) का मास्टर माना जाता था।
आपको 2010 का दंतेवाड़ा हमला याद है? जिसमें हमारे सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गए थे। या फिर 2013 का झीरम घाटी हमला, जिसमें पूरी कांग्रेस लीडरशिप खत्म कर दी गई थी। इन सभी हमलों का मास्टरमाइंड इसी हिड़मा को माना जाता है। सरकार ने उस पर 25 लाख रुपये (और अलग-अलग राज्यों को मिलाकर करीब 40 लाख) से ज्यादा का इनाम रखा था।
कैसे हुआ 'द एंड'?
खबर है कि आंध्र प्रदेश की स्पेशल पुलिस फोर्स (ग्रेहाउंड्स) को पक्की सूचना मिली थी। इसके बाद एक भीषण मुठभेड़ हुई। जंगल में छिपने में माहिर हिड़मा इस बार पुलिस के चक्रव्यूह को नहीं तोड़ पाया और मारा गया।
झारखंड कनेक्शन और सारंडा नेटवर्क (Impact on Saranda)
अब आप सोचेंगे कि मारा तो आंध्र प्रदेश या बॉर्डर इलाके में गया है, तो झारखंड खुश क्यों हो?
दोस्तों, पिछले कुछ समय से सुरक्षाबलों के दबाव के कारण, हिड़मा अपने साथियों के साथ छत्तीसगढ़ छोड़कर झारखंड के 'सारंडा' जंगलों और 'कोल्हान' के इलाके में अपनी पैठ बना रहा था। वह वहां नए लड़ाके तैयार कर रहा था और नेटवर्क फैला रहा था।
उसका मारा जाना, सारंडा में सक्रिय नक्सली नेटवर्क के लिए 'सांप का सिर कुचलने' जैसा है।
- नेतृत्व खत्म: अब नक्सलियों के पास इतना अनुभवी कोई रणनीतिकार नहीं बचा।
- डर का अंत: स्थानीय आदिवासी, जिन्हें वह डराकर रखता था, अब खुलकर सांस ले सकेंगे।
क्या अब शांति आएगी?
यह जीत बहुत बड़ी है। हिड़मा सुरक्षाबलों के लिए एक 'अदृश्य दुश्मन' था। उसकी शक्ल तक बहुत कम लोगों ने देखी थी। उसके जाने से संगठन में भगदड़ मचना तय है। झारखंड पुलिस और केंद्रीय बलों के लिए यह एक बड़ी रणनीतिक जीत है, क्योंकि अब नक्सली बैकफुट पर आ जाएंगे।
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