सीमा विवाद पर जयशंकर की चीन को सलाह, ‘जल्द से जल्द सुलझाएं’

विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत और चीन के बीच तनाव को लेकर चिंता जताई और कहा कि दोनों देशों की मौजूदा स्थिति से किसी भी देश को फायदा नहीं हुआ है.

जयशंकर ने सोमवार शाम एक पैनल चर्चा में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सेना की उपस्थिति कम करने और मौजूदा समझौतों को बनाए रखने पर जोर दिया।

उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि यह हम दोनों के हित में है कि हमें वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बहुत अधिक सैनिक तैनात नहीं करने चाहिए।” मुझे लगता है कि यह हमारे हित में है कि हमने जिस समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं, उसका पालन करें। यह न सिर्फ भारत के हित में है बल्कि चीन के भी हित में है. पिछले चार सालों में दोनों देशों के बीच तनाव से किसी को कोई फायदा नहीं हुआ है.

बेहतर होगा कि इसे जल्द से जल्द सुलझाया जाए

विदेश मंत्री जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत हमेशा सीमा विवाद के निष्पक्ष और तर्कसंगत समाधान के लिए प्रतिबद्ध रहा है और एलएसी को स्वीकार करता है। उन्होंने कहा कि हम इस विवाद को जितनी जल्दी सुलझा लें, हम दोनों के लिए बेहतर होगा.

जयशंकर का यह बयान ऐसे समय आया है जब सीमा विवाद को लेकर चीन के साथ कई चरणों की बातचीत हो चुकी है. भारत और चीन के बीच जून 2020 से तनाव जारी है जब पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में झड़प हुई थी। गतिरोध को शांत करने के लिए दोनों देशों के बीच कई दौर की कूटनीतिक और सैन्य वार्ता हो चुकी है, लेकिन अभी तक कोई समाधान नहीं निकल सका है। फिलहाल दोनों पक्ष शांति बनाए रखने पर सहमत हुए हैं.

सीमा विवाद को सुलझाने के लिए चीन की पेशकश के बारे में पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा कि अगर कोई देश सीमा विवाद को सुलझाने में शामिल है, तो उसे यह मानना ​​होगा कि इसका समाधान होना चाहिए।

उन्होंने ये बात रूस-चीन और पाकिस्तान को लेकर कही

जयशंकर ने रूस और चीन के करीब आने को लेकर भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि अगर रूस और चीन करीब आ रहे हैं तो यह कोई मुद्दा नहीं है. ये भारत का काम नहीं है. रूस के प्रति हमारी नीति बहुत स्पष्ट और वस्तुनिष्ठ है।

पाकिस्तान के साथ बातचीत पर विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने पाकिस्तान के साथ बातचीत के लिए अपने दरवाजे कभी बंद नहीं किए हैं लेकिन आतंकवाद का मुद्दा निष्पक्ष और स्पष्ट तरीके से बातचीत के केंद्र में होना चाहिए. उन्होंने कहा कि बातचीत के केंद्र में आतंकवाद का मुद्दा होना चाहिए. मुद्दे तो और भी हैं लेकिन आतंकवाद के मुद्दे पर बात करना टाला नहीं जा सकता.