International Politics : रूस से तेल खरीदना पड़ेगा महंगा? भारत और चीन पर 100% तक टैक्स लगाने के लिए G7 पर दबाव बना रहा अमेरिका
News India Live, Digital Desk: अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ी हलचल देखने को मिल रही है, जिसके केंद्र में भारत और चीन हैं। अमेरिका अब दुनिया के सात सबसे शक्तिशाली देशों के समूह G7 पर इस बात के लिए दबाव बना रहा है कि वे भारत और चीन पर भारी-भरकम टैक्स (टैरिफ) लगाएं। वजह? वजह है इन दोनों देशों का रूस से लगातार तेल खरीदना।
अमेरिकी सरकार का मानना है कि भारत और चीन जैसे बड़े देश जब रूस से सस्ता तेल खरीदते हैं, तो उस पैसे का इस्तेमाल रूस, यूक्रेन के खिलाफ युद्ध में कर रहा है। फाइनेंशियल टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका चाहता है कि G7 देश भारत और चीन से आने वाले सामानों पर 50% से लेकर 100% तक का टैरिफ लगाएं।
क्यों उठाया जा रहा है यह कदम?
सीधी सी बात है, अमेरिका रूस की आर्थिक कमर तोड़कर उसे बातचीत की मेज पर लाने के लिए मजबूर करना चाहता है। अमेरिकी ट्रेजरी विभाग के एक प्रवक्ता ने साफ़ कहा, “चीन और भारत द्वारा खरीदा गया रूसी तेल पुतिन की युद्ध मशीन को चला रहा है और यूक्रेन के लोगों की जान ले रहा है। जिस दिन यह युद्ध खत्म होगा, ये टैक्स भी हटा दिए जाएँगे।”
इस सनसनीखेज प्रस्ताव पर चर्चा के लिए शुक्रवार को G7 देशों (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका) के वित्त मंत्रियों की एक अहम वीडियो बैठक होने वाली है।
लेकिन कहानी में एक पेंच है
अमेरिका भले ही अपने सहयोगी देशों पर दबाव बना रहा हो, लेकिन यूरोपीय संघ (EU) इस प्रस्ताव को लेकर बहुत उत्साहित नहीं है। यूरोपीय संघ को कई बातों का डर सता रहा है:
- व्यापार युद्ध का खतरा: भारत और चीन दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकतें हैं। इन पर इतना भारी टैक्स लगाने का मतलब है सीधा-सीधा व्यापारिक पंगा लेना। यूरोपीय संघ को डर है कि ये देश भी जवाबी कार्रवाई कर सकते हैं, जिससे यूरोप की अर्थव्यवस्था को बड़ा नुकसान हो सकता है।
- व्यापारिक समझौते: यूरोपीय संघ की भारत के साथ एक बड़े मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement) को लेकर बातचीत अंतिम दौर में है और वह इस बातचीत को खतरे में नहीं डालना चाहता।
- खुद की अलग योजना: यूरोपीय संघ का कहना है कि वह इस तरह के टैक्स लगाने के बजाय, खुद 2027 तक रूस से ऊर्जा की खरीदारी पूरी तरह बंद करने की अपनी योजना पर काम करना चाहता है।
यह मामला भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक चुनौती लेकर आया है। भारत हमेशा से अपनी ऊर्जा जरूरतों और स्वतंत्र विदेश नीति की दुहाई देता रहा है। अब देखना यह होगा कि G7 की बैठक में क्या फैसला होता है और भारत इस अंतर्राष्ट्रीय दबाव का सामना कैसे करता है।
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