Indian Politics : उपराष्ट्रपति चुनाव में नया मोड़, NDA के गढ़ में इंडिया को मिला दो दिग्गजों का साथ

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News India Live, Digital Desk:  देश के अगले उपराष्ट्रपति के चुनाव में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की जीत के आंकड़े भले ही साफ नजर आ रहे हों, लेकिन विपक्षी खेमे ने भी अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. मंगलवार को हुए मतदान में विपक्षी उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी को दो और मजबूत साथियों का समर्थन मिल गया है. राजस्थान के फायरब्रांड नेता और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) के सांसद हनुमान बेनीवाल और उत्तर प्रदेश के दलित नेता और आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद ने रेड्डी के पक्ष में अपना वोट डाला.

कौन हैं ये दो नेता और क्यों अहम है इनका समर्थन?

हनुमान बेनीवाल और चंद्रशेखर आजाद, दोनों ही अपनी-अपनी जातियों और क्षेत्रों में मजबूत पकड़ रखने वाले नेता हैं.

  • हनुमान बेनीवाल: वह राजस्थान के नागौर से सांसद हैं और जाट समुदाय के एक बड़े नेता माने जाते हैं. एक समय में वह भाजपा के साथ गठबंधन में थे, लेकिन किसान आंदोलन के मुद्दे पर उन्होंने एनडीए का साथ छोड़ दिया था. उनका समर्थन राजस्थान की जाट राजनीति में विपक्ष को एक सांकेतिक मजबूती देता है.
  • चंद्रशेखर आजाद: वह उत्तर प्रदेश की नगीना सीट से सांसद हैं और दलित युवाओं के बीच एक उभरता हुआ चेहरा हैं. उनका समर्थन यह संदेश देता है कि दलित समुदाय के एक बड़े नेता का झुकाव 'इंडिया' गठबंधन की ओर है.

एक ही गाड़ी में पहुंचे दोनों सांसद, दिया एकजुटता का संदेश

दिलचस्प बात यह रही कि वोट डालने के लिए हनुमान बेनीवाल और चंद्रशेखर आजाद एक ही गाड़ी में सवार होकर संसद भवन पहुंचे. दोनों नेताओं ने इस मौके पर मीडिया से बात करते हुए कहा कि उन्होंने संविधान और लोकतंत्र की रक्षा के लिए 'इंडिया' गठबंधन के उम्मीदवार का समर्थन किया है.

नंबर गेम पर नहीं पड़ेगा असर, लेकिन...

हालांकि, इन दोनों वोटों से चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि संख्या बल पूरी तरह से एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन के पक्ष में है. लेकिन, राजनीति सिर्फ आंकड़ों का ही खेल नहीं है. यह संकेतों और संदेशों का भी खेल है. बेनीवाल और चंद्रशेखर का एक साथ आना और विपक्ष को समर्थन देना, 2029 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा के खिलाफ एक बड़े मोर्चे की तस्वीर को और मजबूत करता है. यह दिखाता है कि विभिन्न विचारधाराओं के क्षेत्रीय दल भी कुछ मुद्दों पर एक साथ आ सकते हैं, जो भविष्य में एनडीए के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है.

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