मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़: मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ 10 नवंबर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उन्होंने सोमवार को एक मीडिया कार्यक्रम में कहा, ‘स्वतंत्र न्यायपालिका का मतलब यह नहीं है कि फैसले हमेशा सरकार के खिलाफ दिए जाएं। न्यायिक स्वतंत्रता का अर्थ न केवल कार्यपालिका (सरकार) से बल्कि हित समूहों के विभिन्न दबावों और प्रभाव से मुक्त होकर निर्णय देना है।’
डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया न्यायिक स्वतंत्रता का मतलब
न्यायपालिका की निष्पक्षता और पारदर्शिता को समझाते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘परंपरागत रूप से, न्यायिक स्वतंत्रता को कार्यपालिका से स्वतंत्रता के रूप में परिभाषित किया गया था। न्यायपालिका की स्वतंत्रता का अर्थ अभी भी सरकारी हस्तक्षेप से मुक्ति है। लेकिन न्यायिक स्वतंत्रता के संबंध में यही एकमात्र बात नहीं है।
इस संबंध में उन्होंने आगे कहा, ‘अब स्थिति बदल गई है. खासकर सोशल मीडिया के आने के बाद समाज में बदलाव आया है। आपने ऐसे दबाव समूह देखे होंगे जो अदालतों पर अनुकूल निर्णय लेने के लिए दबाव बनाने की कोशिश करते हैं और इसके लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग करते हैं। यह दबाव समूह ऐसा माहौल बना देता है कि यदि निर्णय उनके पक्ष में हो तभी न्यायपालिका स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाली मानी जाती है। यदि निर्णय उन्हें प्रसन्न नहीं करता है, तो न्यायपालिका को स्वतंत्र नहीं माना जाएगा।’
न्यायाधीश केवल कानून और संविधान द्वारा निर्देशित होते हैं: सीजेआई
डीवाई चंद्रचूड़ ने इस मामले पर दुख जताते हुए कहा, ‘स्वतंत्र होने के लिए, एक न्यायाधीश को यह तय करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए कि उसे अपनी अंतरात्मा की बात सुननी है या नहीं। और इसमें कोई संदेह नहीं कि न्यायाधीश की अंतरात्मा कानून और संविधान द्वारा निर्देशित होती है। जब फैसला सरकार के खिलाफ आता है और चुनावी बांड योजना रद्द हो जाती है, तो न्यायपालिका बहुत स्वतंत्र होती है, लेकिन अगर फैसला सरकार के पक्ष में जाता है, तो न्यायपालिका स्वतंत्र नहीं रहती… यह मेरी स्वतंत्रता की परिभाषा नहीं है।’