कुछ पाने के लिए कुछ छोड़ना अनिवार्य माना जाता है। हमारे शरीर को ही लीजिए, सांस लेने के लिए हमें पहले सांस छोड़नी पड़ती है, तभी इस शरीर की आंतरिक संरचना में नवीनता और सक्रियता का संचार होता है। त्याग हमें सांसारिक मोह-माया से अलग करते हुए हमारे आध्यात्मिक व्यक्तित्व को परिपक्वता प्रदान करता है। इस संसार में जितनी भी भौतिक संपत्तियाँ, वस्तुएँ और सामग्रियाँ हैं, वे सभी मानव जीवन में अलग-अलग तरीकों से उचित जीवन जीने के लिए बनाई गई हैं।
इस संसार की प्रत्येक वस्तु भोग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए बनी है, इसलिए मनुष्य को त्याग की दृष्टि से सभी सांसारिक भौतिक वस्तुओं का उपयोग करना चाहिए। नाशवान भौतिक संपदा के निरंतर संचय की आदत मनुष्य को लालच और इच्छा के बंधन में बांध देती है। इस संसार में मनुष्य को उपयोग के लिए जो भी सामग्री मिली है, उनका भी अंत अवश्य होगा।
अर्थात एक न एक दिन हमें उन सभी पदार्थों से अलग होना ही है। त्याग से व्यक्ति की सच्ची गरिमा बहुत बढ़ जाती है। श्रीराम जब महल में थे तब राजा कहलाए और जब उन्होंने महल छोड़ा तब भगवान पुरूषोत्तम श्रीराम कहलाए।
जब सिद्धार्थ गौतम ने त्याग का आदर्श अपनाया तो गौतम बुद्ध के नाम से जाने गये। त्याग के बिना वास्तविक सुख और शांति की कल्पना नहीं की जा सकती। त्याग जीवन का अनिवार्य नियम है। त्याग के बिना सुख का कोई मार्ग नहीं है। भौतिक सांसारिक वस्तुओं से बंधा रहना ही जीवन में दुख का मूल कारण है।
आनंद की प्राप्ति के लिए त्याग का आदर्श अपनाना होगा। भौतिक धन को जमा करने की आदत व्यक्ति को आंतरिक रूप से खोखला बना देती है। इन नाशवान धन-सम्पत्ति का संग्रह एक न एक दिन अवश्य नष्ट हो जायेगा। त्याग के आदर्श को जीवन में अपनाने से आंतरिक संतुष्टि और प्रचुर आनंद मिलता है।