डोनाल्ड ट्रम्प की आक्रामक व्यापार नीतियों ने अमेरिका में बड़ी उथल-पुथल मचा दी है। अमेरिकी शेयर बाजार में भारी गिरावट देखी गई है, एसएंडपी 500 अपने उच्चतम स्तर से 10 प्रतिशत से अधिक गिर गया है। आर्थिक मंदी की आशंकाएं बढ़ रही हैं। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत हैं। व्यापार युद्ध और उच्च टैरिफ के कारण अमेरिकी कंपनियां निवेश करने और नौकरियां पैदा करने में हिचकिचा रही हैं। केपीएमजी की मुख्य अर्थशास्त्री डायने स्वांक का कहना है कि अगले साल की शुरुआत में अमेरिका मंदी की चपेट में आ सकता है। ऐसे में सवाल उठता है कि अमेरिका की आर्थिक मंदी और ऊंचे टैरिफ का भारत पर क्या असर होगा?
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अमेरिका मंदी की चपेट में आता है तो भारत भी इससे अछूता नहीं रहेगा। हालांकि, उनका मानना है कि अमेरिका में मंदी से भारतीय अर्थव्यवस्था पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। भारत सरकार की नीतियां और आरबीआई की मौद्रिक नीति इस प्रभाव को संतुलित करने में सक्षम हैं। ऐसी स्थिति में भारत को सतर्क रहने की जरूरत है। लेकिन घबराने की कोई जरूरत नहीं है।
रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी बाजार में आई गिरावट का असर भारतीय शेयर बाजार पर भी देखने को मिल रहा है। बीएसई सेंसेक्स अपने उच्चतम स्तर से 14 फीसदी गिर चुका है, हालांकि मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शेयर बाजार लंबी अवधि तक मजबूत बना रहेगा और सेंसेक्स 2025 के अंत तक 1,05,000 के स्तर पर पहुंच सकता है। इसके अलावा भारतीय निर्यात को भी झटका लग सकता है। अमेरिका भारत के लिए प्रमुख निर्यात बाजारों में से एक है। यदि अमेरिका अपने टैरिफ बढ़ाता है तो भारतीय उत्पादों की मांग प्रभावित हो सकती है। एनएंडटी समूह के मुख्य अर्थशास्त्री सच्चिदानंद शुक्ला का कहना है कि अमेरिका में आर्थिक मंदी भारत में डॉलर आधारित निवेश और विदेशी पूंजी प्रवाह को प्रभावित कर सकती है।
मंदी कितने समय तक चलती है?
ईवाई इंडिया के प्रमुख नीति सलाहकार डीके श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिका में सरकारी खर्च और कर्मचारी वेतन में कटौती से मांग प्रभावित हो सकती है। हालांकि, उनका मानना है कि यह मंदी लंबे समय तक नहीं रहेगी और ऊर्जा की कीमतों में गिरावट से अमेरिकी अर्थव्यवस्था को राहत मिल सकती है।
एफडीआई पर प्रभाव:
अमेरिकी मंदी से डॉलर मजबूत हो सकता है, जिससे भारतीय रुपया कमजोर होगा। इससे विदेशी निवेश (एफडीआई) और पोर्टफोलियो प्रभावित हो सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अभी भी दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक रहेगा। आईएमएफ के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था 6-6.5% की दर से बढ़ने की संभावना है।
दूसरी ओर, मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है कि ट्रंप की टैरिफ नीति का असर अस्थायी हो सकता है। यदि अन्य देश अपने टैरिफ कम कर दें तो इससे अमेरिकी निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा, जिससे मंदी की आशंका कम हो सकती है। ईवाई के डीके श्रीवास्तव का कहना है कि भारत सरकार को घरेलू मांग बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। सरकारी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाने से भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और वैश्विक मंदी का प्रभाव कम होगा।