भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक बार फिर अपने मन की बात पश्चिम यानी पश्चिमी देशों को बता दी है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करने की आवश्यकता पर बात की। इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक बार फिर पश्चिमी देशों के दोहरे मानदंडों पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि जिस तरह सरकारें अपने देशों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए काम करती हैं, वैसा ही वैश्विक स्तर पर भी होना चाहिए।
“कश्मीर विवाद पाखंड के कारण उत्पन्न हुआ”
जयशंकर ने पश्चिमी देशों की पाखंडी नीति का उदाहरण देते हुए, विशेष रूप से ग्लोबल साउथ से संबंधित मामलों में, बताया कि कैसे पाकिस्तान द्वारा भारतीय धरती पर किए गए हमले या घुसपैठ को पश्चिमी देशों द्वारा क्षेत्रीय विवाद में बदल दिया जाता है। जयशंकर ने कश्मीर मुद्दे पर पश्चिमी देशों के रुख पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि भारत का जम्मू-कश्मीर और लद्दाख लंबे समय से विदेशी ताकतों के अवैध कब्जे में है। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के दो महीने बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के कुछ हिस्सों पर हमला कर दिया और उन पर कब्जा कर लिया। वहीं, चीन ने 1950 और 1960 के दशक में इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।
जयशंकर की नजर में अपराधी कौन है?
उन्होंने अफगानिस्तान के अशांत राजनीतिक परिदृश्य में पश्चिमी देशों के बदलते रुख के बारे में भी बात की। पिछले कुछ दशकों में तालिबान का उत्थान, पतन और पुनरुत्थान इसी का परिणाम है। जयशंकर ने कश्मीर पर पाकिस्तान की आक्रामकता को कूटनीतिक विवाद में बदलने में पश्चिमी देशों की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘हम एक हमले के बारे में संयुक्त राष्ट्र गए थे। यह एक विवाद में बदल गया… हमलावर और पीड़ित को समान माना गया। दोषी पक्ष कौन थे? ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, ब्रिटेन और अमेरिका।
कश्मीर मुद्दे पर कूड़ा कैसे धोया जा सकता है?
पाकिस्तान ने कश्मीर मुद्दे पर पश्चिमी देशों का नाम लेकर पूरी तरह से पल्ला झाड़ लिया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में पाखंड की ओर इशारा करते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, बेल्जियम, ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देश इस गलत बयानी में शामिल हैं। उन्होंने याद दिलाया कि किस प्रकार संयुक्त राष्ट्र में भारत की अपील की भी समान रूप से निंदा की गई थी। जबकि असली हमलावर तो पाकिस्तान था।
उन्होंने तालिबान मुद्दे पर भी कटाक्ष किया।
अफगानिस्तान पर टिप्पणी करते हुए जयशंकर ने पश्चिमी देशों के असंगत रुख की भी आलोचना की। उन्होंने विरोधाभासी स्थिति की ओर इशारा करते हुए कहा कि दोहा और ओस्लो वार्ता में जिन तालिबान नेताओं का स्वागत किया गया था, अब अफगानिस्तान में बिगड़ती स्थिति के लिए उनकी निंदा की जा रही है। उन्होंने इस बात पर चुटकी ली कि कैसे तालिबान, जिन्हें कभी चरमपंथी माना जाता था, अब सूट और टाई पहनते हैं। फिर भी इन्हें एक गंभीर अंतर्राष्ट्रीय चिंता के रूप में देखा जाता है। जयशंकर की टिप्पणी वैश्विक राजनीति में चल रहे विरोधाभास की ओर इशारा करती है, जहां राष्ट्र अक्सर कूटनीतिक आवरण के तहत अनसुलझे मुद्दों को छिपाने की कोशिश करते हैं।