उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़े ने शुक्रवार को आश्चर्य व्यक्त किया कि भारत के मुख्य न्यायाधीश, ‘कानूनी निर्देशों’ के अनुसार भी, सीबीआई निदेशक जैसी कार्यकारी नियुक्तियों में कैसे शामिल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि अब ऐसे मानकों पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है। भोपाल में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी में बोलते हुए उन्होंने यह भी कहा कि मौलिक ढांचे के सिद्धांत का न्यायशास्त्रीय आधार बहुत विवादास्पद है।
सरकार विधायिका के प्रति तथा समय-समय पर मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होती है।
धनखड़े ने कार्यक्रम स्थल पर उपस्थित लोगों से पूछा, “आपके मन में यह सवाल उठ रहा है कि हमारे जैसे देश या किसी भी लोकतंत्र में कानूनी निर्देशों के अनुसार भारत के मुख्य न्यायाधीश सीबीआई निदेशक के चयन का हिस्सा कैसे हो सकते हैं?”
उन्होंने कहा, “क्या इसके लिए कोई कानूनी तर्क हो सकता है? मैं समझ सकता हूं कि वैधानिक निर्देश इसलिए दिए गए क्योंकि तत्कालीन कार्यपालिका न्यायिक निर्णय के अधीन थी। लेकिन अब इस पर पुनर्विचार करने का समय आ गया है, यह निश्चित रूप से लोकतंत्र के अनुरूप नहीं है। हम किसी कार्यकारी नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश को कैसे शामिल कर सकते हैं?”
‘मैं अब और सहन नहीं कर सकता…’
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि न्यायिक आदेश द्वारा कार्यपालिका का शासन एक संवैधानिक विरोधाभास है, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब और बर्दाश्त नहीं कर सकता। सभी संस्थाओं को अपनी संवैधानिक सीमाओं के भीतर काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा, “सरकारें विधायिका के प्रति और समय-समय पर मतदाताओं के प्रति जवाबदेह होती हैं, लेकिन यदि कार्यकारी शासन को दबा दिया जाता है या आउटसोर्स कर दिया जाता है, तो जवाबदेही लागू नहीं होगी। विधायिका या न्यायपालिका द्वारा शासन में कोई भी हस्तक्षेप संवैधानिकता के विरुद्ध है।”