होली 2025: फाल्गुन मास आज से शुरू, होली से पहले शुरू हो जाएगा होलाष्टक

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होली हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जो फाल्गुन माह में मनाया जाता है। शास्त्रों में इसे बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि होली का त्योहार लोगों के दिलों में प्रेम और विश्वास बढ़ाने का अवसर है। इस दिन सभी लोग पुराने गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे के गले मिलकर प्रेमपूर्वक इस त्यौहार को मनाते हैं। होली से एक दिन पहले होलिका दहन की भी परंपरा है।

 

होली का त्यौहार रंगों का त्यौहार है, खुशियों का त्यौहार है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इससे आठ दिन पहले एक ऐसा समय आता है जब सभी शुभ कार्य बंद हो जाते हैं और इन्हें अशुभ माना जाता है? जी हां, हम बात कर रहे हैं होलाष्टक की। होलाष्टक होली से आठ दिन पहले का वह समय है जब प्रकृति में अजीबोगरीब परिवर्तन होते हैं और वातावरण में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है।

होलाष्टक क्या है?

होलाष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘होली’ और ‘अष्टक’, जिसका अर्थ है आठ दिनों की अवधि। यह फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि से लेकर होलिका दहन तक चलता है। वर्ष 2025 में होलाष्टक 7 मार्च से शुरू होकर 13 मार्च तक रहेगा।

होलाष्टक कब आता है?

हर वर्ष होलाष्टक के दिनों की गणना फाल्गुन सुद की अष्टमी तिथि से फाल्गुन सुद की पूर्णिमा (होलिकादहन) तक की जाती है। होलिकादहन पूर्णिमा के दिन शाम के समय किया जाता है। तभी हुताशनी के समय में आग और हवा के बारे में की गई टिप्पणियां सत्य हो सकती हैं। कभी-कभी सुद चौदस तिथि संध्या से पहले या दोपहर में समाप्त हो जाती है, और सुद पूनम तिथि भी संध्या से पहले या अगले दिन दोपहर में समाप्त हो जाती है। ऐसे समय में पूर्णिमा का चंद्रमा चौदहवें दिन की शाम को उदय होता है। इसे त्यौहार की भाषा में व्रत की पूर्णिमा कहा जाता है।

गुजराती भाषा में अष्टक शब्द के दो अर्थ हैं।

(1) अष्टक का अर्थ है आठ श्लोकों का समूह। मंगलाष्टक, यमुनाष्टक, मधुराष्टक आदि।

(2) अष्टक अर्थात आठ दिनों का समूह। होलाष्टक का अर्थ है होली (हुताशनी) से पहले के आठ दिन।

 क्या होलाष्टक को काममूर्त माना जाता है?

 होलाष्टक का मुख्य उद्देश्य पौधों के फलों के प्रसार का अध्ययन करके कृषि संस्कृति और व्यापार को लाभ पहुंचाना है। तथा शुभ कार्यों को टालने के लिए होलाष्टक के सात या आठ दिनों को ‘सामी हुताशनी’ तथा ‘होली की सामी झाल’ जैसे प्रभावशाली एवं वजनदार शब्दों से जाना जाता है।

इसे अशुभ क्यों माना जाता है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, इन आठ दिनों के दौरान हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति से विमुख करने के लिए उसे बहुत यातनाएं दी थीं। इसलिए यह समय नकारात्मक ऊर्जा से भरा माना जाता है। ज्योतिषीय दृष्टि से होलाष्टक के दौरान आठ ग्रह क्रोध की स्थिति में होते हैं, जिसके कारण नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इन ग्रहों में चंद्रमा, सूर्य, शनि, शुक्र, बृहस्पति, बुध, मंगल और राहु शामिल हैं।

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