पॉक्सो केस में पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पर विचार कर अदालतें तय करें जमानत अर्जी : हाईकोर्ट

प्रयागराज, 05 जुलाई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पॉक्सो केस में ट्रायल कोर्टों द्वारा आयु निर्धारण की मेडिकल रिपोर्ट पर विचार किए बगैर जमानत अर्जियों को एकतरफा खारिज किए जाने पर गम्भीर टिप्पणी की है। कहा कि ट्रायल कोर्टें पीड़िता की आयु पर विचार किए बिना यांत्रिक तरीके से जमानत अर्जियों को तय कर रही हैं। यह न्यायिक प्रणाली के लिए गर्भपात जैसा है। यह रवैया उनके पूर्वाग्रह को प्रतिबिंबित करता हैं।

कोर्ट ने इसमें सुधार के लिए न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान लखनऊ, जिला जजों, पुलिस महानिदेशकों और अभियोजन कार्यालय को ठोस कदम उठाने का निर्देश दिया है। कहा है कि सतत लर्निंग प्रोग्राम के तहत उन्हें प्रशिक्षित कर उनके कार्य संस्कृति या मानसिक रूप से योग्य बनाया जाय, जिससे कि न्यायिक व्यवस्था में बदलाव आ सके। और निर्दोष अनावश्यक रूप से जेल में न बंद रहे।

कोर्ट ने कहा जमानत का सम्बंध व्यक्ति के अनुच्छेद 21, के जीवन के मूल अधिकार से है। यह न केवल विधिक अपितु संवैधानिक अधिकार है। जिसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। यह आदेश न्यायमूर्ति अजय भनोट ने जालौन के अनिरूद्ध की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्टों को पॉक्सो के तहत जमानत अर्जियों को निस्तारित करते समय पीड़िता की आयु को पूरा महत्व देना चाहिए। साथ ही उससे जुड़े सभी दस्तावेजों को सावधानीपूर्वक जांच करना चाहिए।

जालौन के याची के खिलाफ दुष्कर्म सहित आईपीसी की विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी। जब कि पीड़िता ने बयान दिया कि दोनों आपसी सहमति से सम्बंधो में रह रहे हैं। कोर्ट ने पाया कि पीड़िता की उम्र को लेकर विरोधाभास है। स्कूल के रिकॉर्ड में उसकी उम्र 13 साल दो माह दर्ज है। जबकि, अपने बयान में उसने अपनी उम्र 15 साल बताई और चिकित्सकीय रिपोर्ट में 18 साल पाई गई। कोर्ट ने कहा अक्सर लोग स्कूल में वास्तविकता से विपरीत कम आयु लिखाते हैं। इस्लाम विरोधाभास पर मेडिकल रिपोर्ट पर भरोसा करना चाहिए।

कोर्ट ने इस तरह के 40 केसों का अवलोकन करते हुए पाया कि ट्रायल कोर्टों ने एक सिरे से जमानत अर्जियों को पास्को केस मानते हुए खारिज कर दिया था। कोर्ट ने मोनिस और अमन केस में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का हवाला देते हुए जांच और ट्रायल कोर्टों के फैसलों पर खेद जताया। कोर्ट ने कहा कि जब पीड़िता की आयु निर्धारण के मामले में विरोधाभास है और पीड़िता की ओर से याचियों के खिलाफ कोई आपत्तिजनक बातें नहीं कहीं गईं। इसके बावजूद ट्रायल कोर्टों द्वारा जमानत अर्जियों को खारिज कर दिया गया। साथ ही ट्रायल कोर्टों से कहा है कि वे पॉक्सो की जमानत अर्जियों पर निस्तारण करते समय आयु से सम्बंधित रिकॉर्डों की पूरी जांच करें।

कोर्ट ने निर्देश दिया है कि पाक्सो केस में पीड़िता की आयु मेडिकल जांच से तय की जाय और विवेचना अधिकारी ऐसी रिपोर्ट जमानत अर्जी सुनवाई कर रही अदालत में पेश करें। डी जी पी सर्कुलर जारी कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कड़ाई से पालन करने का भी निर्देश दिया है।