मामले के अनुसार अधिवक्ता मनीषा भंडारी ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि नाबालिग लड़के-लड़कियों के प्यार के मामले में हमेशा दोषी लड़के को माना जाता है। इनमें कुछ मामलों में लड़की बड़ी होती है तब भी लड़के को ही कस्टडी में लिया जाता है और उसे क्रिमिनल बनाकर जेल में डाल दिया जाता है जबकि उसकी गिरफ्तारी के बजाय काउंसिलिंग होनी चाहिए। ऐसे में जिस उम्र उसे स्कूल कॉलेज होना चाहिए था, वह जेल में होता है। ऐसे मामले में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत ऐसे मामले में लड़के, लड़कियों व परिजनों की काउंसिलिंग की जानी चाहिए। भारतीय दंड संहिता में सोलह से अठारह साल के अपराधी बच्चों को दंड देने के बजाय उनकी मानसिक स्थिति को जानने के लिए बोर्ड का गठन करने का प्रावधान है। इसके विपरीत पोक्सो एक्ट की कुछ धाराओं में जेल भेज दिया जाता है। यह अपने आप मे सोचनीय विषय है। इस पर विचार किया जाना आवश्यक है। नाबालिगों को सीधे जेल न भेजकर उनकी काउंसिलिंग की जानी चाहिए।
सुनवाई के दौरान कोर्ट के संज्ञान में आया कि हल्द्वानी जेल में ऐसे आरोपों से सम्बंधित 20 बच्चे बन्द हैं। मामले को गम्भीरता से लेते हुए हाई कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से जबाव मांगा है।