
भारत में संपत्ति को लेकर अक्सर विवाद सामने आते रहते हैं, खासकर जब वह पारिवारिक हों। कभी-कभी तो माता-पिता और संतान के बीच भी इस तरह के विवाद कोर्ट तक पहुंच जाते हैं। इसी तरह का एक मामला हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में सामने आया, जहां न्यायाधीश ने एक ऐसा निर्णय सुनाया है जो न सिर्फ कानूनी बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी बेहद अहम है।
क्या कहा हाईकोर्ट ने?
हाईकोर्ट ने बिल्कुल स्पष्ट शब्दों में कहा है—“चाहे संतान को संपत्ति में हिस्सा मिले या न मिले, माता-पिता की देखभाल करना उनका कर्तव्य है।” यह टिप्पणी जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया ने एक मामले की सुनवाई के दौरान दी, जो आज के समय में हर परिवार के लिए एक मिसाल बन सकती है।
मामला क्या था?
यह पूरा मामला नरसिंहपुर जिले की एक वृद्धा से जुड़ा है, जिनके चार बेटे हैं। इनमें से एक बेटे को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिला, जिससे नाराज होकर उसने अपनी मां को भोजन के लिए पैसे देने से मना कर दिया। बात यहीं नहीं रुकी। मामला एसडीएम कोर्ट तक पहुंचा, जहां आदेश दिया गया कि सभी बेटे अपनी मां को हर महीने तीन-तीन हजार रुपये दें।
लेकिन बेटे ने इस आदेश को मानने की बजाय हाईकोर्ट में चुनौती दी।
हाईकोर्ट की फटकार और आदेश
हाईकोर्ट ने बेटे की याचिका खारिज कर दी और सख्त लहजे में कहा कि “बेटा होने का मतलब सिर्फ संपत्ति लेना नहीं है, बल्कि माता-पिता की सेवा करना भी है।” कोर्ट ने बेटे को फटकारते हुए कहा कि उसे हर महीने अपनी वृद्ध मां को कम से कम 2000 रुपये देना होगा।
इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि माता-पिता ने संतान को जीवन भर पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया, उनके हर सपने को पूरा किया, और अब जब उन्हें वृद्धावस्था में मदद की जरूरत है, तो संतान को पीछे नहीं हटना चाहिए।
रजिस्ट्री या वसीयत में धोखा? कोर्ट ने कही बड़ी बात
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि यदि कोई बेटा या संतान धोखे से माता-पिता की संपत्ति अपने नाम करा लेता है, तो वह वसीयत या रजिस्ट्री कानूनी रूप से अमान्य मानी जाएगी।
यह बात उन तमाम माता-पिता के लिए राहत है, जो अपने बच्चों द्वारा धोखा खाने के बाद भी न्याय की उम्मीद रखते हैं।
इस फैसले से क्या संदेश मिलता है?
- संवेदनशीलता और नैतिकता की अहमियत: संपत्ति से परे माता-पिता की सेवा को कानूनी रूप से मान्यता दी गई है।
- कानूनी सुरक्षा: अब कोई भी बेटा यह कहकर पल्ला नहीं झाड़ सकता कि उसे हिस्सेदारी नहीं मिली इसलिए वह जिम्मेदारी से मुक्त है।
- सभी को चेतावनी: यह फैसला भविष्य में ऐसे तमाम मामलों के लिए मिसाल बनेगा और अन्य संतानों के लिए चेतावनी भी।
हाईकोर्ट का यह फैसला न सिर्फ न्यायिक निर्णय है, बल्कि एक सामाजिक संदेश भी है—रिश्ते सिर्फ अधिकार नहीं, जिम्मेदारियों के भी नाम होते हैं।