हाईकोर्ट ने आपसी मुकदमे छिपाते हुए जनहित याचिका करने वाले पर 25 हजार का लगाया हर्जाना

प्रयागराज, 08 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाइकोर्ट ने आपस में लम्बित मुकदमे के तथ्य को छिपाते हुए जनहित याचिका दायर करने वाले पर 25 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है और याचिका खारिज कर दी है।

याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी अधिकारियों द्वारा पारित ध्वस्तीकरण आदेश के अनुपालन की मांग करते हुए एक जनहित याचिका दायर की। यह दलील दी गई थी कि विचाराधीन भूमि एक पार्क होनी चाहिए थी। जहां विपक्षी उत्तर दाताओं द्वारा निर्माण कार्य किया गया था। याची ने कहा कि भले ही ध्वस्तीकरण आदेश पारित किया गया था लेकिन इसे बहुत लम्बे समय तक लागू नहीं किया गया।

विपक्षी ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत होकर कहा कि विचाराधीन भूमि उनके नाम पर दर्ज की गई थी और याचिकाकर्ता द्वारा भूमि के लिए उनके नाम दर्ज किए जाने के खिलाफ दायर अपील को उप कलेक्टर द्वारा खारिज कर दिया गया था। डिप्टी कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध रिवीजन को भी कमिश्नर ने खारिज कर दिया। यह प्रस्तुत किया गया कि आयुक्त के आदेश के खिलाफ एक रिट याचिका भी दायर की गई है जो हाईकोर्ट के समक्ष लम्बित थी। तर्क दिया कि याचिकाकर्ता ने अपनी जनहित याचिका में लम्बित मुकदमे से सम्बंधित तथ्यों को छुपाया है।

अदालत ने पाया कि जब याची के वकील से लम्बित मुकदमे के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे एक अलग भूमि के सम्बंध में थे। हालांकि, रिकॉर्ड अन्यथा दर्शाते हैं। मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने राम सूरत बनाम यूपी सरकार व अन्य के केस में आदेश पारित कर कहा कि “स्पष्ट रूप से वर्तमान याचिका परस्पर सम्बंधित मुकदमों को छिपाते हुए दायर की गई है और जनहित याचिका के रूप में याचिका का उपयोग कार्यान्वयन की मांग करने के लिए किया गया है।“ जिस आदेश के विरुद्ध अपील परस्पर पक्षकारों में लम्बित है। उस पर सक्षम न्यायालय द्वारा आदेश पारित किया जा चुका है। याचिकाकर्ता के उक्त आचरण को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने जनहित याचिका खारिज करते हुए 50 हजार रुपये का जुर्माना लगाया। याचिका कर्ता को 25000 रुपये इलाहाबाद हाईकोर्ट की स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी के पास जमा कराने होंगे।