हाईकोर्ट ने हलफनामा दाखिल करने में लापरवाही पर राज्य की आलोचना की

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प्रयागराज, 25 सितम्बर (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हलफनामा दाखिल करने में सरकारी वकीलों के लापरवाही पूर्ण रवैया को लेकर गम्भीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि सरकार के वकील अक्सर न्यायालय के समक्ष हलफनामा दाखिल करते समय लापरवाही बरतते हैं।

यह आदेश न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की पीठ ने श्रीमती इंद्रवती देवी व अन्य की याचिका पर पारित किया है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी कमियों को दूर करने के लिए बार-बार निर्देश दिए जाने के बावजूद राज्य सरकार लगातार लापरवाह रवैया अपना रही है। कोर्ट ने इस आदेश को उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता व प्रमुख सचिव न्याय के समक्ष भेजने का निर्देश दिया है।

अदालत ने कहा, “राज्य प्राधिकारियों तथा राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों का रवैया बहुत ही लापरवाह है। अदालत ने हलफनामा दाखिल करने में हुई गलतियों या कमियों को सुधारने के लिए विभिन्न अवसरों पर छूट दी है, लेकिन सब व्यर्थ रहा।“

न्यायालय ने यह टिप्पणी भदोही के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक मामले में प्रस्तुत व्यक्तिगत हलफनामे में कुछ विसंगतियों को ध्यान में रखते हुए की, जिसमें एक निश्चित भूमि के लिए स्टाम्प शुल्क मूल्यांकन को चुनौती दी गई थी।

हाईकोर्ट ने बार बार समय देने के बाद भी हलफनामा दाखिल न करने पर कोर्ट ने डीएम भदोही से उनका व्यक्तिगत हलफनामा मांगा था। राज्य को भी यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया गया कि उसका जवाबी हलफनामा दाखिल किया जाए। बाद में दाखिल किए गए व्यक्तिगत हलफनामे में जिला मजिस्ट्रेट ने आश्वासन दिया कि उनका इरादा अदालत के पिछले निर्देशों का उल्लंघन करने का नहीं था। उन्होंने कहा कि अदालत के आदेशों के बारे में उन्हें कभी नहीं बताया गया। उन्होंने कहा कि इसके परिणामस्वरूप, तय समय सीमा के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया जा सका।

हालांकि, न्यायालय को इस हलफनामे में कई गलतियां देखकर आश्चर्य हुआ। ऐसी गलतियों में से एक गलती यह थी कि जिला मजिस्ट्रेट के बजाय हाईकोर्ट का गलत संदर्भ दिया गया था। न्यायालय ने कहा कि पैराग्राफ को पढ़ने से यह स्पष्ट नहीं हो रहा है कि जिला मजिस्ट्रेट क्या कहना चाह रहे थे।

न्यायालय ने यह भी कहा कि यद्यपि हलफनामा जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दायर किया गया था, लेकिन इसमें गलती से एक पृष्ठ पर यह दर्शा दिया गया कि हलफनामा “पुलिस आयुक्त“ द्वारा दायर किया गया था।

न्यायालय ने हलफनामे को पुनः प्रस्तुत करने तथा 17 सितम्बर के अपने आदेश में इन त्रुटियों को रेखांकित करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि इसी प्रकार की ग़लती हाल ही में एक अन्य मामले (विजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य) में पारित 13 सितम्बर के आदेश में भी देखी गई थीं। उस मामले में न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता और उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव (विधि) को ऐसे मुद्दों का संज्ञान लेने का निर्देश दिया था।

अदालत ने आदेश जारी करते हुए कहा, “इस मामले को उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता तथा प्रमुख सचिव (कानून) और एलआर के समक्ष भी रखा जाए ताकि वे इस मामले पर गौर कर सकें। कोर्ट ने रजिस्ट्रार (अनुपालन) को इस आदेश को आज से एक सप्ताह के भीतर उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता तथा प्रमुख सचिव (कानून) और एलआर को सूचित करने को कहा है। कोर्ट इस मामले पर 4 नवम्बर को सुनवाई करेगी।