प्रयागराज, 04 जून (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पितृत्व विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एक ही समय पर हॉट एंड कोल्ड की इजाजत नहीं दी जा सकती है। कोर्ट ने पिता से कहा कि बच्चों को गुजारा भत्ता दो या डीएनए जांच कराए। भत्ता न देना और संदेह प्रकट कर डीएनए जांच से इनकार करना दोनों बातें एक साथ नहीं चलेगी।
कोर्ट ने यह भी कहा कि पितृत्व विवाद के कारण गुजारा भत्ता देने से इनकार करना बच्चों के जीवन के मूल अधिकार का उल्लंघन है। यह आदेश जस्टिस प्रशांत कुमार की सिंगल बेंच ने याची सचिन अग्रवाल की याचिका पर दिया है।
मालूम हो कि वृंदावन, मथुरा निवासी महिला पत्नी ने अपने व बच्चों के गुजारा भत्ता के लिए परिवार अदालत में केस दायर किया था। विपक्षी पिता ने अर्जी देकर कहा कि बच्चे उसके नहीं हैं। वह गुजारा भत्ता देने के लिए उत्तरदायी नहीं है। ऐसी स्थिति में पत्नी ने डीएनए जांच की मांग की, ताकि सच्चाई सामने आ सके। इस पर परिवार अदालत ने डीएनए जांच का आदेश दिया। जिसे याचिका दायर कर हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।
याची की ओर से यह भी तर्क दिया गया कि विपक्षी महिला उसकी वैध पत्नी नहीं है और उसकी सहमति के बिना डीएनए परीक्षण कराने के लिए उसे मजबूर नहीं किया जा सकता। डीएनए परीक्षण का आदेश याची के मूल अधिकारों का हनन व गैर कानूनी है। जबकि विपक्षी महिला के अधिवक्ता का कहना था कि याची ही बच्चों का जैविक पिता है और सिर्फ गुजारा भत्ता देने से बचने के लिए वे अपनी संतान मानने से इनकार कर रहा है।
कोर्ट ने कहा अदालत का कर्तव्य है कि वह सबसे सटीक और विश्वसनीय तरीकों का उपयोग करके सच्चाई का पता लगाए और न्याय करे। गुजारा पाने का अधिकार केवल कानूनी प्रावधान नहीं है, बल्कि यह मानवाधिकार में शामिल हैं। इसलिए संदेहास्पद पितृत्व विवाद के कारण बच्चों को गुजारा भत्ता देने से इनकार करना उनके जीवन के मानवीय अधिकारों का हनन होगा।