मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद की सुनवाई जारी, अगली सुनवाई 27 को

प्रयागराज, 24 मई (हि.स.)। इलाहाबाद हाईकोर्ट में मथुरा कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद को लेकर दाखिल सिविल वादों की सुनवाई जारी है। अगली सुनवाई 27 मई को होगी।

शुक्रवार को हिंदू पक्ष ने बहस की कि देवता शाश्वत नाबालिग होते हैं इसलिए सीपीसी के आदेश 32 के प्रावधान (जो नाबालिग के विरुद्ध मुकदमे के सम्बंध में प्रक्रिया से संबंधित है) इस मामले में भी लागू होगा। कहा गया कि भगवान श्री कृष्ण विराजमान कटरा केशव देव द्वारा मित्र के माध्यम से सिविल वाद दायर किए गए हैं, जिसमें अपनी जमीन से मस्जिद का अवैध कब्जा हटाकर वापस सौंपने की मांग की गई है। यह केस विधि सम्मत है।

कहा गया कि मुक़दमों की ग्राह्यता का निर्णय वाद बिंदु तय करने और पक्षों से साक्ष्य लेने के बाद किया जा सकता है। साक्ष्य के लिए विवादित स्थल के धार्मिक स्वरूप का पता लगाने के लिए सर्वे कराया जाना जरूरी है। सिविल वादों की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन कर रहे हैं। समयाभाव के कारण मामले की सुनवाई सोमवार तक के लिए स्थगित कर दी गई।

कहा गया था कि पूजा स्थल अधिनियम 1991 केवल अविवादित ढांचे के मामले में लागू होगा। विवादित ढांचे के मामले में यह नहीं लागू होगा। इस मुकदमे में विवादित स्थल का धार्मिक चरित्र तय किया जाना शेष है और यह केवल साक्ष्य द्वारा तय किया जाना है। ऐसे में मंदिर में अवैध निर्माण पर मुकदमा चलाने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह सब मुकदमे में ही गुण दोष के आधार पर विचार कर तय किया जाएगा।

मस्जिद पक्ष ने कहा कि मुकदमा मियाद अधिनियम से बाधित है। दो पक्षकारों के बीच अदालत में 12 अक्टूबर 1968 को समझौता कर लिया था। उस समझौते द्वारा विवादित स्थल शाही ईदगाह की इंतजामिया कमेटी को दे दिया गया था। वर्ष 1974 में तय हुए एक दीवानी मुकदमे में इस समझौते की पुष्टि हो चुकी है।

शाही ईदगाह के ढांचे को हटाने के बाद कब्जे के साथ मंदिर की बहाली और स्थायी निषेधाज्ञा के लिए यह मुकदमा किया गया है। मुकदमे में मांगे गए अनुतोष से पता चलता है कि ईदगाह की ढांचा वहां है और इंतजामिया कमेटी का उस पर आधिपत्य है और वह वक्फ सम्पत्ति है।

ऐसे में इस मामले में वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे और ऐसे मामले की सुनवाई का अधिकार वक्फ न्यायाधिकरण को है, न कि सिविल कोर्ट को। इसलिए सिविल वादों को खारिज किया जाय।