Healthcare Access : सर्वाइकल कैंसर से बचाव क्यों मुश्किल भारतीय महिलाओं की अनिच्छा के पीछे क्या हैं मुख्य वजहें
News India Live, Digital Desk: Healthcare Access : भारत में सर्वाइकल कैंसर महिलाओं में दूसरा सबसे आम कैंसर है, लेकिन बावजूद इसके, स्क्रीनिंग दरों में गंभीर रूप से कमी देखने को मिलती है। जागरूकता कार्यक्रमों और चिकित्सा क्षेत्र में हुई प्रगति के बावजूद, एक बड़ी आबादी की महिलाएं नियमित स्क्रीनिंग करवाने से हिचकिचाती हैं। कई कारक इस अनिच्छा और देरी के लिए जिम्मेदार हैं, जो बीमारी के प्रारंभिक निदान और प्रभावी उपचार में बाधा डालते हैं।
इसका एक मुख्य कारण सामाजिक और सांस्कृतिक वर्जनाएं हैं। भारत के कई हिस्सों में, जननांग स्वास्थ्य और यौन संबंधों पर बात करना अभी भी वर्जित माना जाता है। इससे महिलाओं के लिए डॉक्टरों से इन विषयों पर खुलकर बात करना मुश्किल हो जाता है, जिससे वे जांच से कतराती हैं। डॉक्टर से मुलाकात के दौरान संकोच, डर और झिझक के कारण कई महिलाएं अपने लक्षणों या जांच की आवश्यकता के बारे में बात नहीं कर पातीं।
दूसरा बड़ा कारण जानकारी का अभाव है। कई महिलाओं को यह जानकारी ही नहीं होती कि सर्वाइकल स्क्रीनिंग (जैसे पैप टेस्ट या एचपीवी डीएनए टेस्ट) क्यों महत्वपूर्ण है, या यह बीमारी कैसे फैलती है और इसका पता कैसे लगाया जाता है। कैंसर के लक्षणों के बारे में कम जानकारी होने के कारण भी महिलाएं समय पर डॉक्टर के पास नहीं जातीं। उन्हें अक्सर शुरुआती चेतावनी के संकेतों को पहचानने में परेशानी होती है।
चिकित्सा सुविधाओं तक पहुंच की कमी भी एक महत्वपूर्ण कारक है, खासकर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में। विशेष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी केंद्रों का अभाव और यातायात की समस्याओं के कारण उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में बाधाएं आती हैं। प्रशिक्षित चिकित्सा पेशेवरों, जैसे महिला डॉक्टरों की कमी, भी कई महिलाओं को असहज महसूस कराती है, जिससे वे जांच से दूर रहती हैं।
आर्थिक बाधाएं भी एक चुनौती हैं। हालांकि सरकारी अस्पतालों में जांच निःशुल्क या कम लागत पर उपलब्ध हो सकती हैं, फिर भी यात्रा का खर्च, छुट्टी लेना या परिवार के खर्च का वहन करना महिलाओं के लिए मुश्किल हो सकता है। प्राथमिकता का अभाव भी एक बड़ी वजह है। भारतीय परिवारों में महिलाएं अक्सर अपने स्वास्थ्य को परिवार के बाकी सदस्यों की जरूरतों के बाद प्राथमिकता देती हैं, जिससे उनकी खुद की स्वास्थ्य जांचों में देरी हो जाती है।
इस गंभीर स्थिति से निपटने के लिए कई उपाय आवश्यक हैं। स्कूलों और समुदायों में जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ाना, स्वास्थ्यकर्मियों को महिलाओं के स्वास्थ्य के बारे में संवेदनशील बनाना, और मुफ्त या कम लागत वाली स्क्रीनिंग सुविधाओं की पहुंच बढ़ाना ज़रूरी है। इसके साथ ही, स्थानीय भाषाओं में जानकारी उपलब्ध कराना और महिलाओं के लिए सुरक्षित व गोपनीय माहौल बनाना भी महत्वपूर्ण है, ताकि वे बिना किसी संकोच के अपनी जांच करवा सकें। इन सभी बाधाओं को दूर करके ही हम सर्वाइकल कैंसर की शुरुआती पहचान और रोकथाम में सुधार ला सकते हैं।
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