खुशी हमारे जीवन का मुख्य लक्ष्य है लेकिन यह हमारी अंतिम मंजिल नहीं बल्कि एक यात्रा है। जीवन आनंदमय हो और तेजी से आगे बढ़े, इसी कामना में हर कोई अपना जीवन जी रहा है। जीवन की यह यात्रा चार अलग-अलग चरणों से होकर गुजरती है।
प्रत्येक स्तर पर विशिष्ट प्रेरणा और कार्यशैली की आवश्यकता होती है। हम प्रयास कर सकते हैं लेकिन सफलता ईश्वर की कृपा पर निर्भर करती है। पहला स्तर ईश्वर की पहचान है। इस स्तर पर हमारा प्रयास अधिक से अधिक लोगों, विशेषकर आध्यात्मिक साधकों को शुभ कर्म के इस मार्ग पर लाने का होना चाहिए। दूसरा चरण सृजन के साथ एकता का है। इस स्तर पर चुनौतियाँ न केवल हमारी मानवीय और जैविक क्षमताओं से बल्कि गैर-जैविक शक्तियों से भी आती हैं।
इस स्तर पर हमें सृष्टि की हर चीज़ के साथ एकता का अनुभव करना होगा। हमें यह समझना होगा कि इस सृष्टि का प्रत्येक कण, प्रत्येक परमाणु उसी परम शक्ति का अंश है। तीसरा स्तर मानसिक अनुभव और सिद्धियाँ है। इस स्तर पर विकास की गति तेज़ होती है और साधक कुछ सिद्धियाँ प्राप्त कर सकता है लेकिन यहाँ ख़तरा भी अधिक होता है। एक साधक इन सिद्धियों का दुरुपयोग करने के लिए प्रलोभित हो सकता है। इसलिए इस स्तर पर ईश्वर की कृपा के लिए अधिक मजबूत मानसिक शक्ति की आवश्यकता होती है।
इस स्तर पर भगवान सर्वोच्च गुरु बन जाते हैं जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। साधक को यह समझना होगा कि वह ईश्वर की इच्छा से ही इस धरती पर आया है और उसकी इच्छा की पूर्ति के लिए ही प्रयास कर रहा है। चौथा स्तर है मन की एकाग्रता।
इस स्तर पर सभी लक्ष्य, पदार्थ, अनुभूतियाँ एक बिंदु में विलीन हो जाती हैं। मन एकाग्र हो जाता है और यही सुख का मार्ग है। इस स्तर पर साधक को पूर्ण आत्म-ज्ञान और आनंद की प्राप्ति होती है। ईश्वर में आस्था, समर्पण और उचित मार्गदर्शन से हम सभी खुशी की इस राह पर आगे बढ़ सकते हैं।