अनूपपुर, 17 अप्रैल (हि.स.)। इस बार लोकसभा के लिए हो रहे चुनावों को राजनीतिक दलों के लिए भले ही ‘निष्क्रियता और सक्रियता’ मुद्दा हो लेकिन शहडोल संसदीय क्षेत्र की जनता के लिए बड़ा मुद्दा है आठ साल से अधूरा नेशनल हाइवे, ट्रेनों की लेट लतीफी, रेलवे ओवर ब्रिज तथा साफ पानी। इन मुद्दों पर दोनों प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस तथा भाजपा सहित अन्य दलों के प्रत्याशियों के पास कोई ठोस प्लान नहीं है। भाजपा प्रत्याशी हिमाद्री सिंह अपने एजेंडा में इस कोल बेल्ट एरिया में पर्यटन विकास तथा हवाई अड्डे को प्रमुखता से जोड़े हुए हैं तो कांग्रेस के फुंदेलाल सिंह मार्को का पूरा एजेंडा आदिवासियों के इर्द-गिर्द निष्क्रियता और सक्रियता में सिमटा हुआ है। क्षेत्र में जनता की प्रमुख मांगों को लेकर कोई भी खुल कर बात नहीं कर रहा।
शहडोल-नेशनल हाइवे 43 पर शहडोल से उमरिया के बीच का 73 किलोमीटर लंबे हिस्से का काम 8 साल बाद भी पूरा नहीं हो पाया है। इससे उमरिया से शहडोल या फिर इसके आगे अनूपपुर, बिलासपुर व रायपुर की यात्रा करने वालों को तकलीफ देह यात्रा करना पड़ती है। खस्ताहाल सड़कों और यात्री ट्रेनों के आए दिन रद्द होने या इनकी लेटलतीफी भी बड़ा मुद्दा है।
अनूपपुर- जिला मुख्यालय में बहुप्रतीक्षित रेलवे ओवरब्रिज का निर्माण 6 साल बाद भी अधूरा रह जाना लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। क्षेत्र का विकास तथा ट्रेनों की लेटलतीफी से यहां के लोग भी परेशान हैं। अनूपपुर में सैनिक स्कूल की मांग भी लंबे समय से लोग कर रहे हैं।
उमरिया जिला मुख्यालय में उमरार नदी से साफ पानी की उपलब्धता के लिए ट्रीटमेंट प्लांट बड़ा मुद्दा है। इस बड़े मुद्दे पर भी किसी भी दल के प्रत्याशी बात नहीं कर रहे हैं।
चुनावी सरगर्मी नदारद
सांसदी बरकरार रखने मैदान में उतरीं भाजपा की हिमाद्री सिंह तथा पहली बार संसदीय चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के तीन बार के विधायक फुंदेलाल मार्को का प्रचार व जनसंपर्क अभियान अपने-अपने तरीके से चल रहा है वह भी शांति से। शहर के लेकर गांव तक प्रचार-प्रसार की सरगर्मी नहीं दिख रही। हिमाद्री को मोदी लहर और गारंटी के सहारे चुनावी नैया पार लग जाने की पूरी उम्मीद है। वहीं फुंदेलाल को उम्मीद है कि ‘निष्क्रियता’ का मुद्दा जनता के बीच असर कर जाएगा।
यहां ऐसा भी हो चुका
1971 के ऐतिहासिक संसदीय चुनाव की यादें अब भी क्षेत्र के बुजुर्गों के जहन में हैं। अनूपपुर शहर के अधिवक्ता श्यामबाबू जायसवाल बताते हैं आदिवासी बहुल शहडोल संभाग के मतदाताओं का मिजाज कोई समझ नहीं ज सकता। वह किसी भी बात से खुश या नाराज हो सकता है। और किसी से प्रभावित होता है तो ऐसे कि 1971 जैसा इतिहास रच देता है। जायसवाल बताते हैं कि 1971 के चुनाव में कांग्रेस से खफा होकर रीवा राजघराने के मार्तंड सिंह ने शहडोल से धनशाह प्रधान को निर्दलीय चुनाव मैदान में उतारा लेकिन रीवा राज परिवार से चुनाव प्रचार करने कोई नहीं आया। धनशाह रीवा राजा की पगड़ी लेकर प्रचार करने निकले और हर जगह यही कहते थे कि यह चुनाव राजा की प्रतिष्ठा का है। उस समय अंचल के लोगों के मन में रीवा नरेश के प्रति लगाव था और पगड़ी की लाज रखने मतदाताओं ने निर्दलीय धनशाह को सांसद बना दिया।
पार्टी बदली, बदला परिणाम-
शहडोल संसदीय क्षेत्र में सर्वाधिक वोटर गोंड़ आदिवासी वर्ग से हैं तो इस वर्ग को साधने के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टी ने गोंड़ आदिवासी वर्ग से ही उम्मीदवार मैदान में उतारा है। हिमाद्री सिंह और फुंदेलाल सिंह दोनों ही गोड़ हैं और दावा करते रहे हैं समाज के बीच उनकी अच्छी पैठ है।
जातियों का गणित मतदाता प्रतिशत
अनुसूचित जनजाति गोंड़ 380546 21.46
अनुसूचित जनजाति कोल 159500 9.00
अनुसूचित जनजाति बैगा 149200 8.42
ब्राह्मण 123700 7.00
समान्यम वैश्य बनिया 43400 2.45
समान्यम ठाकुर राजपूत 34300 1.94
समान्यम कायस्थ 5500 0.31
समान्यम जैन बनिया 5300 0.30
ओबीसी कलार, राय 20700 1.17
ओबीसी यादव 102700 5.80
ओबीसी केवट माझी 91700 5.18
अनुसूचित जाति 80400 4.54
मुस्लिम 57500 3.24
ओबीसी कुर्मी, पटेल 44200 2.50
पार्टी बदली, बदला परिणाम-
2016 उपचुनाव में बतौर कांग्रेस उम्मीदवार हिमाद्री सिंह भाजपा के ज्ञान सिंह से चुनाव हार गईं। 2019 चुनाव में हिमाद्री सिंह भाजपा की टिकट पर उतरीं और कांग्रेस उम्मीदवार प्रमिला सिंह को हराकर सांसद बनीं। प्रमिला सिंह जयसिंहनगर विधानसभा से 2013 से 2018 तक भाजपा से विधायक रहीं और बाद में पार्टी बदलकर 2019 लोकसभा चुनाव कांग्रेस से लड़ीं। हार के कुछ माह बाद वे फिर से भाजपा में आ गईं। 2009 लोकसभा चुनाव में राजेश नंदनी सिंह से चुनाव हारने वाले नरेंद्र मराबी हिमाद्री से विवाह कर इसी परिवार के दामाद बने।