जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने के लिए जीओएम की बैठक 20 अक्टूबर को

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नई दिल्ली, 15 अक्टूबर (हि.स.)। फूड, फुटवियर्स और टेक्सटाइल आइटम्स से जुड़ी जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने के लिए आए प्रस्तावों पर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) की अगली बैठक 20 अक्टूबर को होगी। माना जा रहा है कि फूड, फुटवियर्स और टेक्सटाइल आइटम्स की जीएसटी दर को कम करके 5 प्रतिशत के टैक्स स्लैब में लाने का प्रस्ताव जीओएम की बैठक में तैयार किया जा सकता है। जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने और जीएसटी के ढांचे को सरल बनाने के लिए गठित जीओएम की अध्यक्षता बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी करेंगे।

जानकारों का कहना है कि जीएसटी ढांचे को सरल बनाने और दरों को तर्कसंगत करने से जीएसटी से जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स को काम करने में सुविधा होगी। इसके साथ ही नियमों का बोझ भी कम होगा और जीएसटी संग्रह में भी ओवरऑल तेजी आएगी। माना जा रहा है कि जीओएम की बैठक में करीब 100 आइटम्स की दरों को तर्कसंगत बनाने के लिए आए प्रस्तावों पर चर्चा की जा सकती है। हालांकि, इसमें सबसे पहले फूड, फुटवियर्स और टेक्सटाइल आइटम्स पर चर्चा की जाएगी, क्योंकि ये लोगों के दैनिक जीवन में काम आने वाली वस्तुएं हैं।

बताया जा रहा है कि 20 अक्टूबर को होने वाली बैठक में जिन वस्तुओं की जीएसटी दरों की समीक्षा की जाएगी वे फिलहाल 12 प्रतिशत के टैक्स स्लैब में हैं। चर्चा के बाद जीओएम अपनी ओर से एक सुझाव पत्र तैयार करेगा, जिसे नवंबर के महीने में होने वाली जीएसटी परिषद की अगली बैठक में पेश किया जाएगा। जीएसटी ढांचे को सरल बनाने और जीएसटी दरों को तर्कसंगत करने के लिए 1 नवंबर 2023 को ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स (जीओएम) का गठन किया गया था। जीओएम में सम्राट चौधरी के अलावा पश्चिम बंगाल की वित्त मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य, उत्तर प्रदेश के वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना, केरल के वित्त मंत्री केएन बालगोपाल, राजस्थान के स्वास्थ्य मंत्री गजेंद्र सिंह और कर्नाटक के राजस्व मंत्री केबी गौड़ा भी शामिल हैं।

ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स ने पहले हुई अपनी बैठक में जीएसटी में सिर्फ तीन स्लैब 5 प्रतिशत, 18 प्रतिशत और 28 प्रतिशत रखने की बात कही थी। ऐसी स्थिति में 12 प्रतिशत वाले स्लैब को चरणबद्ध रूप से खत्म करने पर की बात पर भी 20 अक्टूबर को होने वाली बैठक में चर्चा हो सकती है। हालांकि, 12 प्रतिशत वाले स्लैब को पूरी तरह से खत्म करने में समय लगने की बात भी कही जा रही है, क्योंकि इससे राज्यों को मिलने वाले रेवेन्यू पर भी असर पड़ेगा। ऐसी स्थिति में इस प्रस्ताव पर सहमति देने के पहले तमाम राज्य अपनी आर्थिक स्थिति और राजस्व पर पड़ने वाले असर की समीक्षा जरूर करेंगे, जिसमें समय लग सकता है।