श्वेते वृषेसमारूढा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥
ओंकारः पातु शीर्षो मां, हीं बीजं मां, हृदयो। क्लीं बीजं सदापातु नभो गृहो च पादयो॥ ललाटं कर्णो हुं बीजं पातु महागौरी मां नेत्रं घ्राणो। कपोत चिबुको फट् पातु स्वाहा मा सर्ववदनो॥
किशनगंज,16अप्रैल(हि.स.)। चैत्र नवरात्र का आठवां दिन मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा गई। महाकाल मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत ने बताया कि मां महागौरी का राहु ग्रह पर नियंत्रण है। राहु दोष से निवारण के लिए इनकी पूजा आवश्यक है।
महागौरी की आराधना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं और समस्त दुखों का नाश होता है। उन्होंने बताया कि माता महागौरी धन-वैभव की देवी है। नवरात्रि के आठवें दिन महा अष्टमी मनाई जाती है। महाअष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा की जाती है, इस बार चैत्र शुक्ल की अष्टमी तिथि 15 अप्रैल दोपहर 12 बजकर 11 मिनट से शुरू होगी और 16 अप्रैल को दोपहर एक बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी। शहर के अनुसार समय में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है। उन्होंने बताया कि चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि 16 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 23 मिनट से शुरू होकर 17 अप्रैल को दोपहर 3 बजकर 14 मिनट तक रहेगी।
मां दुर्गा के आठवें स्वरूप महागौरी को मोगरे का फूल अति प्रिय है। इस दिन मां के चरणों में मोगरे के फूल को अर्पित करना शुभ माना गया है। इसलिए हो सके तो माता को मोगरे के फूलों से बनी माला अर्पित करें। इसके साथ ही मां को नारियल की बर्फी और लड्डू अवश्य चढ़ाएं। क्योंकि मां का प्रिय भोग नारियल माना गया है। गुरु साकेत ने बताया कि माता गौरी की पूजा में 16 चीजें जैसे फल, फूल, सुपारी, पान, लड्डू, मिठाई, 16 चूड़ी, 7 अनाज, फूल की 16 माला आदि चढ़ानी चाहिए। गुरु साकेत ने बताया कि पूजा में 16 चूड़ियां अर्पण करने से माता खुश होती हैं। पूजा के समय मंगला गौरी व्रत की कथा जरूर पढ़नी और सुननी चाहिए।
उन्होंने बताया कि मां महागौरी की पूजा करने के लिए सुबह स्नान कर सफेद रंग के वस्त्र धारण करें। फिर मां महागौरी की मूर्ति या तस्वीर को गंगाजल से साफ कर लें। मां महागौरी को सफेद रंग अतिप्रिय है। इसलिए माता महागौरी को सफेद रंग के पुष्प अर्पित करें। मां को रोली व कुमकुम का तिलक लगाएं, फिर मिष्ठान, पंच मेवा और फल अर्पित करें। अष्टमी के दिन मां महागौरी की पूजा करते समय उन्हें काले चने का भोग लगाना चाहिए। अष्टमी तिथि के दिन कन्या पूजन भी शुभ माना जाता है। इसके बाद आरती व मंत्रों का जाप करें। फिर दुर्गासप्तशती का पाठ करें।
महाकाल मंदिर में पहले दिन से ही कलश स्थापित कर माता की पूजा अर्चना शुरू की गई थी। पूजा वैदिक मंत्रोच्चार के साथ मंदिर के पुरोहित गुरु साकेत के सानिध्य में की जा रही है। यहां माता के साथ महाकाल की भी पूजा की जाती है। इस अवसर पर भक्त सुबह से ही माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे थे। मंदिर को आकर्षक रूप से सजाया गया था। संध्या में आरती की जाती है। आठवें दिन सुबह से ही भक्तों का आगमन हो रहा था।