RBI के सामने धर्मसंकट: सस्ते लोन की खुशी दें या महंगाई का डर रोकें? एक फैसले पर टिकी हैं सबकी निगाहें
देश के सबसे बड़े बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरफ आज पूरा देश बड़ी उम्मीद और थोड़ी घबराहट के साथ देख रहा है। RBI की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की अहम बैठक होने जा रही है, और इस बार यह बैठक किसी ‘अग्निपरीक्षा’ से कम नहीं है।
ऐसा इसलिए है क्योंकि आरबीआई एक ऐसे चौराहे पर खड़ा है, जहां एक रास्ता देश के विकास को गति देता है, जबकि दूसरा रास्ता मुद्रास्फीति के जिन्न को वापस बोतल में बंद करने की चुनौती देता है।
क्या है RBI का सबसे बड़ा ‘सिरदर्द’?
इसे आसान भाषा में समझते हैं। इस कहानी के दो मुख्य किरदार हैं:
- उद्योग जगत और बाजार: ये लोग चाहते हैं कि RBI अपनी ब्याज दरें (Repo Rate) घटाए। अगर ऐसा होता है, तो बैंकों से मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाएगा। इसका सीधा मतलब है कि आपकी होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की EMI कम हो सकती है। उद्योगपतियों को अपनी फैक्ट्री और बिजनेस के लिए सस्ता लोन मिलेगा, जिससे वे ज्यादा निवेश करेंगे और नौकरियां पैदा होंगी। यानी देश की ग्रोथ को रफ्तार मिलेगी।
- महंगाई (Inflation): यह RBI का सबसे बड़ा दुश्मन है। पिछले कुछ समय से खाने-पीने की चीजों से लेकर हर चीज महंगी हुई है। RBI का सबसे पहला काम महंगाई को काबू में रखना होता है। अगर RBI ब्याज दरें घटा देता है, तो लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा आएगा, वे ज्यादा खर्च करेंगे, और इससे महंगाई के फिर से सिर उठाने का खतरा बढ़ जाएगा।
तो बाजार और इंडस्ट्री की क्या हैं उम्मीदें?
बाजार और उद्योग जगत तो पलकें बिछाए बैठा है कि RBI इस बार कोई अच्छी खबर सुनाएगा और ब्याज दरों में कम से कम 0.25% की कटौती जरूर करेगा। उन्हें लगता है कि अब महंगाई का सबसे बुरा दौर बीत चुका है और देश की आर्थिक ग्रोथ को एक ‘बूस्टर डोज’ देने का यह बिल्कुल सही समय है।
यह RBI के लिए ‘रस्सी पर चलने’ जैसा है
अब आप समझ सकते हैं कि RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास और उनकी टीम के सामने कितनी बड़ी चुनौती है।
- अगर वे ब्याज दरें नहीं घटाते हैं, तो बाजार और सरकार नाराज हो सकते हैं कि वे ग्रोथ को सपोर्ट नहीं कर रहे।
- और अगर वे ब्याज दरें घटा देते हैं, तो उन पर यह आरोप लग सकता है कि वे महंगाई को लेकर नरम पड़ रहे हैं।
यह RBI के लिए किसी रस्सी पर चलने जैसा है, जहां एक तरफ महंगाई की खाई है और दूसरी तरफ धीमी विकास दर की। अब देखना यह है कि RBI इन दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाता है। इस एक फैसले पर न सिर्फ शेयर बाजार की चाल, बल्कि हम सबकी जेब और देश की दिशा, दोनों निर्भर करेगी।
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