गाजीपुर, 13 अप्रैल (हि.स.)। देश में नई सरकार चुनने के लिए 18वीं लोकसभा का ऐलान हो चुका है। 19 अप्रैल को पहले चरण का मतदान भी होगा। गाजीपुर जनपद में एक तरफ जहां समाजवादी पार्टी ने बसपा के निवर्तमान सांसद व बाहुबली मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी को अपना प्रत्याशी बनाया है तो वहीं भाजपा ने भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ स्वयंसेवक एवं एक शिक्षक पारसनाथ राय को अपना प्रत्याशी बनाया है।
सक्रिय राजनीति से दूर शिक्षक की भूमिका निभाते हुए समाज के सभी वर्गों में अपने व्यवहार से लोकप्रिय पारसनाथ राय जनपद के जमीनी व्यक्तित्वधारी व्यक्ति हैं। एक गैर राजनीतिक व्यक्ति का राजनीति के सबसे बड़े पर्व में देश की सबसे बड़ी पार्टी द्वारा प्रत्याशी बनाया जाना भले ही कुछ लोगों का अप्रत्याशित लगा हो। लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से अपनी कुशल रणनीति का विभिन्न अवसरों पर परिचय दे चुके पारसनाथ राय फिलहाल सबसे भारी नजर आ रहे हैं।
एक तरफ 18वीं लोकसभा चुनाव में काफी पहले से बाहुबली मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी को सपा ने अपना प्रत्याशी बना दिया था। वहीं भाजपा द्वारा एक सामान्य शिक्षक को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद कुछ लोगों को भले अप्रत्याशित लग रहा हो या अफजाल अंसारी को वाकओवर देना जैसा लग रहा है। लेकिन केवल अगर लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम पर ध्यान दें तो फिलहाल भाजपा के पारसनाथ राय सबसे आगे हैं।
लोकसभा चुनाव 2019 के गाजीपुर चुनाव परिणाम पर ध्यान दें तो उक्त चुनाव में सपा बसपा गठबंधन प्रत्याशी अफजाल अंसारी चुनाव जीते थे। जिन्होंने बीजेपी के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री पूर्वांचल के विकास पुरुष कहे जाने वाले मनोज सिन्हा को लगभग सवा लाख मतों के अंतर से पराजित किया था।
गौरतलब हो की लोकसभा चुनाव 2019 में सपा बसपा का गठबंधन था। दोनों के मत मिलाकर अफजाल अंसारी सवा लाख मतों से आगे थे। लोकसभा चुनाव 2024 में यह गठबंधन टूट चुका है। बहुजन समाज पार्टी के पिछले तीन लोकसभा चुनाव के परिणाम पर ध्यान दें तो कोई ऐसा चुनाव नहीं रहा, जिसमें बहुजन समाज पार्टी दो लाख से अधिक मत नहीं पाई हो। लोकसभा चुनाव 2014 में बसपा ने अकेले दम पर ढाई लाख मत प्राप्त किए थे।
इस प्रकार अगर लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा के केवल 2 लाख मत भी सपा बसपा गठबंधन के प्रत्याशी से निकाल लिए जाएं तो फिलहाल भाजपा प्रत्याशी लगभग 75000 मतों से आगे नजर आएंगे। इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव 2019 में ओमप्रकाश राजभर की सुभासपा पार्टी अलग से चुनाव लड़ी थी, जहां उसके प्रत्याशी राम जी राजभर को लगभग 30 हजार मत प्राप्त हुए थे। उक्त मत को भी भाजपा के खाते में जोड़ लेने पर 2019 का चुनाव परिणाम में भाजपा लगभग एक लाख से अधिक मत से आगे नजर आने लगी है। यह तो रही कागज पर आंकड़ों की बात।
अब अगर गाजीपुर में वर्तमान स्थिति की बात करें तो 2014 में मनोज सिन्हा के लोकसभा सांसद चुनाव जीतने के बाद जब वह केंद्र में मंत्री बने थे तब गाजीपुर में विकास के बयार बह चली थी। खुद मनोज सिन्हा द्वारा 2019 में अपने चुनाव में दावा किया जाता रहा कि आजाद भारत के इतिहास में आजादी के बाद से मेरे कार्यकाल को छोड़कर जितना पैसा आया हो एक तरफ कर दीजिए, मेरे कार्यकाल में आया पैसा एक तरफ कर दीजिए। अगर मेरा पैसा अधिक ना हो तो मुझे वोट मत दीजिएगा। इस तरह के विकास के दावे करने वाले लोग बिरले ही मिलते हैं। लेकिन गाजीपुर का दुर्भाग्य कहा जाए या गठबंधन में संख्या बल की देन, सिन्हा चुनाव हार गए।
अफजाल अंसारी बोले थे मैं नहीं कर सकता मनोज सिन्हा जितना विकास
2014 से 2019 तक जिस गाजीपुर में प्रत्येक सप्ताह एक नई परियोजना का शिलान्यास या लोकार्पण होता था। वही गाजीपुर 2019 से 24 तक विकास की एक ईंट तक को तरस गया। खुद मतगणना परिणाम के दिन नवनिर्वाचित तत्कालीन सांसद अफजाल अंसारी से विकास के बावत पूछने पर उन्होंने पत्रकारों से कहा कि सरकार मेरी बन नहीं रही है, मुझे मंत्री बनवा दो तब मैं भी कुछ काम कर दूंगा। इसके बाद गाजीपुर वालों को अपनी गलती का एहसास हो गया था। लगातार 5 वर्ष तक गाज़ीपुर विकास की ईंट को तरस गया। हालांकि इस दौरान मनोज सिन्हा अपने व्यक्तिगत इंटरेस्ट के तहत गाजीपुर ताड़ीघाट रेल परियोजना को पूर्ण करवाए जबकि गाजीपुर मऊ नई रेल लाइन परियोजना, स्टेडियम व अन्य परियोजनाएं ठंडा बस्ता में चली गई। इन 5 वर्षों में गाजीपुर संसदीय क्षेत्र में पूरा कार्यकाल के दौरान सरकार में प्रतिनिधि नहीं होना गाजीपुर संसदीय क्षेत्र के लोगों को काफी तकलीफ देता रहा। ऐसे में एक सामान्य शिक्षक पारसनाथ राय का चुनावी मैदान में आना फिर से नई एक उम्मीद बनता नजर आ रहा है।
-पारसनाथ राय में लोग देख रहे मनोज सिन्हा की छाया
पूर्व केंद्रीय मंत्री व वर्तमान में जम्मू कश्मीर के लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा के साथ काशी हिंदू विश्वविद्यालय में लिखे पढ़े पारसनाथ राय व मनोज सिन्हा का एक दूसरे से काफी मधुर पारिवारिक संबंध रहा है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय से पढ़ाई लिखाई पूरी करने के बाद एक तरफ जहां मनोज सिन्हा राजनीतिक क्षेत्र में चले गए। वहीं पारसनाथ राय पंडित मदन मोहन मालवीय से प्रेरणा लेकर जखनिया के पिछड़े क्षेत्र में शिक्षा की गंगा बहाई। शुरू से ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए जो आरएसएस के विभिन्न पदों पर कार्य करते हुए टिकट मिलने के समय तक जौनपुर विभाग में पदाधिकारी रहे। हालांकि टिकट प्राप्त होने के बाद सक्रिय राजनीति में नई भूमिका मिलने के बाद उन्हें आरएसएस का पद छोड़ना पड़ा। पारसनाथ राय सक्रिय राजनीति में कभी नहीं रहे हो। लेकिन एक कुशल रणनीतिकार, कुशल प्रबंधन के रूप में राजनीति के कई कार्यो को उन्होंने सकुशल संपन्न कराया है।
मनोज सिन्हा जब-जब चुनाव लड़े हैं उनके प्रबंधक के रूप में पारसनाथ राय नजर आते रहे हैं। ऐसे में एक तरफ जहां पिछले 5 वर्षों तक गाजीपुर वाले विकास की एक ईंट को तरसते रह गए। अब मनोज सिन्हा के पारिवारिक मित्र निकट संबंधी पारसनाथ राय में लोग मनोज सिन्हा की छाया देख रहे हैं। ऐसे में गाजीपुर वाले पुनः 19 के भूल सुधारने की बात करते नजर आने लगे हैं।