चुनावी स्याही को लेकर चुनाव आयोग पहली बार कर रहा विचित्र स्थिति का सामना

हमीरपुर, 16 जून (हि. स.)। मतदान के दोहराव, झूठे-फर्जी मतदान को रोकने में काम आने वाली यह स्याही दशकों से भारत के नागरिकों के सुरक्षित मतदान अधिकार की प्रतीक है। मतदान केंद्र पर मौजूद चुनाव कर्मी मतदाता की अंगुली पर यह निशान लगाकर तय कर देते हैं कि न सिर्फ उस नागरिक ने मतदान किया है, बल्कि उसका मतदान का अधिकार सुरक्षित है। यह चुनावी स्याही इतनी जिद्दी होती है कि किसी चीज से साफ नहीं होती और त्वचा की मृत कोशिकाओं के साथ ही निकलती है।

पर इस बार हमीरपुर सहित 3 विधानसभा उपचुनावों में एक विचित्र स्थिति से चुनाव आयोग को गुजरना पड़ेगा, यहां लोकसभा चुनावों के तुरंत बाद हमीरपुर, देहरा और नालागढ़ उपचुनाव होने जा रहे हैं। एक जून को जहां इन विधानसभा क्षेत्रों के मतदाताओं ने लोकसभा के वोट डालें हैं तो अभी उसके लगभग 40 दिनों के भीतर इन क्षेत्रों में दोबारा विधानसभा उपचुनाव होने जा रहे हैं। जानकारों की माने तो मतदान के समय लगाई जाने वाली स्याही लगभग एक महीने से लेकर 50 दिन तक हमारी चमड़ी और नाखून पर रहती है। अब इस स्थिति में जब मतदाता मतदान करने जाएगा तो उसके लिए चुनाव आयोग क्या प्रावधान करेगा ये देखने वाली बात होगी।

क्या कहते है चुनाव अधिकारी

एसडीएम हमीरपुर, मनीष सोनी से बात करने पर उन्होंने बताया कि इस संदर्भ में चुनाव आयोग से अभी तक कोई निर्देश नहीं आए हैं पर शीघ्र की जैसे कोई निर्देश आते हैं तो वो बता दिया जाएगा।

क्या है चुनावी स्याही का विज्ञान

चुनावी स्याही को बनाने के लिए स्लिवर नाइट्रेट का इस्तेमाल होता है जो पानी से भी मिटता नहीं। सिल्वर नाइट्रेट हमारे शरीर में मौजूद नमक से मिलकर सिल्वर क्लोराइड बनाता है, जो काले रंग का होता है। इस स्याही का केमिकल रिएक्शन इतनी जल्दी होता है कि उंगली पर लगने के एक सेकंड के भीतर अपना निशान छोड़ देती है। इलेक्शन की स्याही दाे दिन से लेकर डेढ़ दो महीने तक त्वचा पर बनी रहती है। ये स्याही तभी उतरती है जब त्वचा के सेल पुराने होने पर उतरने लगते हैं। इंसान के शरीर के तापमान और वातावरण के हिसाब से स्याही के मिटने का समय अलग अलग हो सकता है।