तेजस्वी मुस्लिम नेतृत्व खत्म कर रहे हैं ,RJD के पूर्व सांसद का विस्फोटक बयान, बिहार की राजनीति में आया तूफान

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News India Live, Digital Desk: बिहार की राजनीति में आजकल बयानबाजी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर काफी तेज है, और इसी बीच एक ऐसा बयान आया है जिसने आरजेडी के एम-वाई (मुस्लिम-यादव) समीकरण पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सांसद मौलाना शाहबुद्दीन ने आरजेडी नेता तेजस्वी यादव पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने दावा किया है कि तेजस्वी यादव बिहार में मुस्लिम नेतृत्व को जानबूझकर खत्म कर रहे हैं, ठीक उसी तरह जैसे उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव ने किया था. यह बयान ऐसे समय आया है जब विधानसभा चुनाव करीब हैं और इससे बिहार की सियासत में हलचल तेज हो गई है.

क्या हैं मौलाना शाहबुद्दीन के आरोप?

मौलाना शाहबुद्दीन का साफ कहना है कि तेजस्वी यादव 'मुस्लिम नेतृत्व को किनारे' कर रहे हैं. उनके मुताबिक, "तेजस्वी यादव अपने चारों ओर कुछ ऐसे लोगों से घिरे हुए हैं, जो उन्हें मुस्लिम समुदाय के बारे में गलत जानकारी देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें दरकिनार कर दिया जाता है." यह दावा कि तेजस्वी यादव द्वारा टिकट वितरण और पार्टी के महत्वपूर्ण निर्णयों में मुस्लिम नेताओं को 'नजरअंदाज' किया जा रहा है, आरजेडी के अंदरूनी कलह को उजागर करता है. शाहबुद्दीन का मानना ​​है कि इससे मुस्लिम प्रतिनिधित्व कमजोर हो रहा है.

अखिलेश यादव से तुलना क्यों?

शाहबुद्दीन ने अपने आरोपों में उत्तर प्रदेश का उदाहरण दिया और कहा कि अखिलेश यादव ने भी मुस्लिम नेतृत्व को यूपी में 'कमजोर' किया, जिसका खामियाजा समुदाय को भुगतना पड़ा. उनके इस बयान का सीधा मतलब है कि अगर बिहार में भी यही चलता रहा, तो मुस्लिम समुदाय अपनी राजनीतिक आवाज और पार्टी के अंदर अपनी हिस्सेदारी खो सकता है. 'बिहार मुस्लिम नेतृत्व संकट' एक ऐसा मुद्दा है जो चुनावी रणनीति पर असर डाल सकता है.

विधानसभा चुनाव में क्या होगा असर?

मौलाना शाहबुद्दीन ने यह भी साफ कर दिया है कि उनकी आरजेडी से या महागठबंधन से 'विधानसभा चुनाव 2025 में उम्मीदवार बनने' की कोई मंशा नहीं है. उन्होंने बताया कि मुस्लिम समाज के भीतर उनके परिवार और राजनीतिक जुड़ावों को फिलहाल पार्टी द्वारा महत्व नहीं दिया जा रहा है. यहां तक कि उन्होंने यह भी कहा कि अगर उनके बच्चे या उनकी पत्नी राजनीति में आते भी हैं, तो वो आरजेडी के झंडे के नीचे नहीं आएंगे. यह एक संकेत है कि आरजेडी के भीतर 'एम-वाई समीकरण' में दरार पड़ रही है और पार्टी को 'मुस्लिम मतदाताओं' का विश्वास फिर से हासिल करने में चुनौती का सामना करना पड़ सकता है. यह स्थिति बिहार की मुस्लिम राजनीति के भविष्य के लिए अहम हो सकती है.

ये आरोप न सिर्फ आरजेडी के आंतरिक मामलों को सामने लाते हैं, बल्कि बिहार की मुस्लिम राजनीति पर भी बड़ा असर डाल सकते हैं, जिससे आगामी चुनावों में सियासी समीकरण बदल सकते हैं.

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