Election Boycott : जब नेताओं के लिए बंद हो गए दरवाज़े भागलपुर के इस मोहल्ले ने क्यों किया चुनाव का बहिष्कार?
News India Live, Digital Desk: Election Boycott : चुनाव का मौसम आते ही नेता आपके दरवाज़े पर हाथ जोड़े खड़े नज़र आते हैं, बड़े-बड़े वादे करते हैं और जीत जाने के बाद पांच साल के लिए गायब हो जाते हैं। लेकिन इस बार बिहार के भागलपुर में जनता ने नेताओं को उनकी असली जगह दिखाने की ठान ली है। शहर के वार्ड नंबर 27 स्थित भीखनपुर मोहल्ले के लोगों ने नेताओं का स्वागत फूलों से नहीं, बल्कि "चुनाव बहिष्कार" के पोस्टरों से किया है।
इस मोहल्ले के हर घर के दरवाज़े और दीवारों पर आपको ये पोस्टर लगे मिल जाएंगे, जिन पर साफ़ और मोटे अक्षरों में लिखा है- "रोड नहीं, तो वोट नहीं।" यह सिर्फ़ एक नारा नहीं, बल्कि उन लोगों का सालों का दर्द, गुस्सा और सिस्टम से उठा हुआ भरोसा है, जो अब फूटकर बाहर आ गया है।
क्यों सड़कों पर उतर आए लोग (अपने ही दरवाज़ों पर)?
भीखनपुर के लोगों की कहानी भी बिहार के कई गांवों और कस्बों जैसी है, जहां विकास सिर्फ़ चुनावी वादों में ही सिमटकर रह जाता है।
- सड़कें या गड्ढों का समंदर?: स्थानीय लोगों का कहना है कि वे सालों से नरक जैसी ज़िंदगी जी रहे हैं। मोहल्ले में सड़क नाम की कोई चीज़ बची ही नहीं है। हर तरफ़ गहरे और जानलेवा गड्ढे हैं, जो हल्की सी बारिश में कीचड़ के तालाब में बदल जाते हैं।
- वादे हज़ार, काम ज़ीरो: लोगों का आरोप है कि उन्होंने अपनी इस समस्या के लिए नगर निगम से लेकर विधायक और मेयर तक, हर किसी का दरवाज़ा खटखटाया। हर बार उन्हें चाय-पानी के साथ सड़क बनवाने का मीठा आश्वासन मिला, लेकिन सड़क पर एक ईंट तक नहीं रखी गई।
- "अब बहुत हुआ सम्मान!": एक स्थानीय नागरिक ने गुस्से में कहा, "नेता लोग सोचते हैं कि हम बेवक़ूफ़ हैं। चुनाव आता है तो उन्हें हमारी याद आती है। अब हमने भी तय कर लिया है, जब तक सड़क नहीं बनेगी, तब तक इस मोहल्ले में किसी नेता की 'नो एंट्री' है। कोई वोट मांगने की हिम्मत न करे।"
जब पोस्टर बन गए जनता की आवाज़
भीखनपुर में लगे ये पोस्टर अब पूरे शहर में चर्चा का विषय बन गए हैं। ये सिर्फ़ कागज़ के टुकड़े नहीं, बल्कि उन लोगों की आवाज़ हैं जिन्हें अनसुना कर दिया गया था। यह मामला स्थानीय प्रशासन और नेताओं के लिए एक बड़ी शर्मिंदगी का सबब बन गया है।
यह घटना दिखाती है कि लोकतंत्र में जनता ही असली मालिक है। जब नेता अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं और जनता को सिर्फ़ 'वोट बैंक' समझते हैं, तो जनता भी उन्हें सबक सिखाने के लिए अपने सबसे बड़े अधिकार, 'वोट के बहिष्कार', का हथियार उठा सकती है। अब देखना यह है कि भागलपुर के लोगों की यह 'गांधीगिरी' सोए हुए सिस्टम को जगा पाती है या नहीं।
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