‘ईडी आम लोगों के साथ आतंकवादियों से भी बदतर व्यवहार करता है…’, सुप्रीम कोर्ट ने कहा

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सुप्रीम कोर्ट ईडी पर : प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की कार्रवाई की सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट द्वारा कड़ी आलोचना की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बेहतर होगा कि प्रवर्तन निदेशालय अपराधों की संख्या के बजाय अभियोजन की गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करे। इसके साथ ही, अदालत ने ईडी द्वारा दर्ज मामलों में दोषियों को दी जाने वाली सजा की कम दर पर भी चिंता व्यक्त की। 

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 12 फरवरी को एक पूर्व आबकारी अधिकारी के खिलाफ धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के इस्तेमाल की आलोचना की और कहा कि दहेज कानून की तरह इस कानून का भी दुरुपयोग हो रहा है।

एक अन्य अवसर पर, सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा के एक पूर्व कांग्रेस विधायक को ईडी द्वारा मध्य रात्रि में गिरफ्तार करने और 15 घंटे तक पूछताछ करने को अमानवीय दृष्टिकोण बताया। इसके अतिरिक्त, एक महिला के मामले में जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की दलीलों का विरोध किया था और कहा था कि उसकी दलीलें पीएमएलएल के प्रावधानों के विपरीत हैं। हम नियमों का उल्लंघन करते हुए किये गए प्रस्तुतीकरण को बर्दाश्त नहीं कर सकते। 

ईडी ने पूर्व आईएएस अधिकारी को तलब किया और गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तारी करने में ईडी की जल्दबाजी पर सवाल उठाया। अदालत ने यहां तक ​​कहा था कि आईपीसी के तहत पकड़े गए आतंकवादी की गिरफ्तारी के लिए इतनी जल्दबाजी की जरूरत भी नहीं है।

इसके साथ ही अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में दोषसिद्धि की कम दर की ओर भी ध्यान आकर्षित किया और ईडी को कार्यवाही और साक्ष्य की गुणवत्ता पर ध्यान देने को कहा। संसद में पेश एक बयान में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि ईडी को अपराधियों की सजा बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक जांच करनी चाहिए। उच्च न्यायालय ने कई बार ईडी की जांच पद्धति की आलोचना की है। एक अवसर पर, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने ईडी से कहा कि सोने का अधिकार एक बुनियादी मानवीय आवश्यकता है और आधी रात में बयान दर्ज करके इसका उल्लंघन नहीं किया जा सकता। 

एक अलग मामले में, बॉम्बे उच्च न्यायालय ने ईडी को नागरिकों को परेशान करने और कानून को अपने हाथ में लेने के खिलाफ चेतावनी दी। नवंबर 2024 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने ईडी की जांच को त्रुटिपूर्ण और गैर-पेशेवर बताया था और ईडी निदेशक से इस संबंध में त्रुटियों को स्पष्ट करने को कहा था। 

निचली अदालतें भी ईडी की जांच पर नाराजगी जता रही हैं। ट्रायल कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि उसे धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के प्रावधानों के तहत किसी भी प्रकार के साक्ष्य के साथ मुकदमा चलाने पर आपत्ति है। अदालत ने कहा कि ईडी जिस तरह से दहेज विरोधी कानून का इस्तेमाल उत्पीड़न के लिए कर रही है, वही तरीका अब पीएमएलए कानून में भी लागू किया जा रहा है।