झारखंड के संघर्ष की गूंज इंग्लैंड में ,कुणाल सारंगी ने पर्यावरण चुनौतियों पर प्रकाश डाला

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News India Live, Digital Desk: अक्सर हम सुनते हैं कि "जंगल बचेगा तो हम बचेंगे", लेकिन झारखंड के लोग इस बात को जीते हैं। आज प्रदेश के लिए यह गर्व का पल है कि हमारी माटी, हमारे संघर्ष और हमारे पर्यावरण की बात अब सिर्फ़ रांची या जमशेदपुर तक सीमित नहीं रही, बल्कि इंग्लैंड (UK) के प्रतिष्ठित मंचों पर गूंज रही है।

झारखंड के युवा नेता और पूर्व विधायक कुणाल सारंगी (Kunal Sarangi) ने हाल ही में इंग्लैंड की मशहूर ससेक्स यूनिवर्सिटी (University of Sussex) में एक विशेष लेक्चर दिया। विषय था— 'झारखंड का पर्यावरणीय संघर्ष'।

यह सिर्फ़ एक भाषण नहीं था, बल्कि यह उस दर्द और जद्दोजहद की कहानी थी जिससे हमारा राज्य दशकों से जूझ रहा है।

दुनिया को दिखाई झारखंड की 'असली' तस्वीर
हम सब जानते हैं कि झारखंड खनिजों (Minerals) का खजाना है। कोयला, लोहा, बॉक्साइट—सब कुछ यहाँ मिलता है। लेकिन कुणाल सारंगी ने विदेशी छात्रों और प्रोफेसरों के सामने बेबाकी से रखा कि इस खजाने को निकालने के लिए हमें कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है।

उन्होंने बताया कि कैसे अनियंत्रित खनन (Mining) और औद्योगीकरण ने झारखंड के पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने "जल, जंगल और ज़मीन" की लड़ाई को एक वैश्विक नज़रिये (Global Perspective) से जोड़ा। उन्होंने समझाया कि विकास ज़रूरी है, लेकिन अगर इसकी कीमत आदिवासी संस्कृति और हरियाली को मिटाकर चुकाई जाए, तो यह सौदा घाटे का है।

विदेशी छात्र भी हुए प्रभावित
कुणाल का अंदाज इतना प्रभावशाली था कि वहां मौजूद छात्रों ने उनसे कई सवाल पूछे। उन्होंने बताया कि कैसे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का असर झारखंड के गरीब और आदिवासी समाज पर पड़ रहा है।
यह देखना सच में सुकून देने वाला है कि हमारे बीच का कोई नेता, हमारे मुद्दों को इतनी संजीदगी के साथ अंतराष्ट्रीय स्तर पर उठा रहा है। इससे दुनिया का ध्यान झारखंड की समस्याओं और यहाँ की समृद्ध संस्कृति की तरफ जाएगा।

युवाओं के लिए प्रेरणा
जमशेदपुर और बहरागोड़ा जैसे इलाकों से निकलकर एक वैश्विक यूनिवर्सिटी में लेक्चर देना कोई छोटी बात नहीं है। कुणाल सारंगी की यह पहल दिखाती है कि अगर इरादे पक्के हों, तो स्थानीय आवाज़ (Local Voice) को ग्लोबल बनते देर नहीं लगती।

झारखंड को ऐसे प्रयासों की और ज़रूरत है, ताकि दुनिया जाने कि हम सिर्फ कोयले की खदान नहीं, बल्कि प्रकृति के असली रक्षक भी हैं।

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