Earthquake in Jharkhand Politics : स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव मंजूर, अपनी ही कुर्सी पर बहस कराएंगे अध्यक्ष

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Newsindia live,Digital Desk: Earthquake in Jharkhand Politics : झारखंड की सियासत में उस वक्त एक बड़ा और अभूतपूर्व मोड़ आ गया, जब विधानसभा अध्यक्ष (स्पीकर) रविंद्र नाथ महतो ने खुद अपनी ही कुर्सी के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर बहस को मंजूरी दे दी। यह प्रस्ताव विपक्षी दल बीजेपी की ओर से लाया गया था, जिसे स्पीकर ने लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान करते हुए स्वीकार कर लिया। इस फैसले के बाद राज्य का सियासी पारा गरमा गया है।

क्या है पूरा मामला?

झारखंड विधानसभा के सत्र के दौरान मुख्य विपक्षी दल, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने स्पीकर रविंद्र नाथ महतो के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। बीजेपी का आरोप था कि स्पीकर सदन में विपक्ष की आवाज को दबा रहे हैं और सत्ता पक्ष के पक्ष में काम कर रहे हैं। नियम के अनुसार, ऐसे किसी भी प्रस्ताव को सदन में चर्चा के लिए स्वीकार करने के लिए कम से कम 27 विधायकों का समर्थन जरूरी होता है।

जब प्रस्ताव पेश किया गया, तो बीजेपी और उसके सहयोगी दलों के 30 से ज़्यादा विधायक इसके समर्थन में खड़े हो गए, जिसके बाद प्रस्ताव को स्वीकार करना पड़ा।

जब स्पीकर ने खुद दी अपने खिलाफ प्रस्ताव को मंजूरी

सबसे दिलचस्प नजारा तब देखने को मिला, जब स्पीकर रविंद्र नाथ महतो ने अपनी कुर्सी से ऐलान किया कि उनके खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को नियमानुसार चर्चा के लिए मंजूरी दी जाती है। उन्होंने कहा कि जल्द ही कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में इस प्रस्ताव पर बहस और वोटिंग के लिए तारीख और समय तय किया जाएगा।

स्पीकर के इस कदम को लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनके सम्मान के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, यह तय है कि जब इस प्रस्ताव पर बहस होगी, तो सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जबरदस्त आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलेगा।

क्या स्पीकर की कुर्सी खतरे में है?

संख्या बल के हिसाब से देखें तो झारखंड में सत्तारूढ़ गठबंधन (JMM-कांग्रेस-RJD) के पास बहुमत का आंकड़ा मौजूद है। ऐसे में यह लगभग तय है कि वोटिंग के दौरान यह अविश्वास प्रस्ताव गिर जाएगा और स्पीकर अपनी कुर्सी पर बने रहेंगे।

लेकिन, बीजेपी ने यह प्रस्ताव लाकर सरकार और स्पीकर पर राजनीतिक और नैतिक दबाव बनाने का एक बड़ा दांव खेला है। अब सबकी निगाहें उस दिन पर टिकी हैं, जब सदन में स्पीकर की अपनी ही कुर्सी को लेकर पक्ष और विपक्ष में जोरदार बहस होगी।

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