आज के दौर में जिस तरह की जीवनशैली लोगों की है, उसमें हमारे लिए अपने दिल की सेहत पर ध्यान देना बहुत ज़रूरी हो गया है। कार्डियोवैस्कुलर डिज़ीज़ (CVD) दुनिया भर में मौत का सबसे बड़ा कारण बनी हुई है। भारत में भी 2020 में दिल की बीमारी के कारण लगभग 4.77 मिलियन (47.7 लाख) मौतें दर्ज की गईं। परंपरागत रूप से, दिल की बीमारियों का इलाज एक समान तरीके से किया जाता था, जिसमें हर व्यक्ति की अलग-अलग ज़रूरतों को ध्यान में नहीं रखा जाता था। अब, विशेषज्ञों का मानना है कि व्यक्तिगत देखभाल के ज़रिए दिल की बीमारियों से निपटना ज़्यादा कारगर हो सकता है।
एलडीएलसी (जिसे खराब कोलेस्ट्रॉल भी कहा जाता है) का हृदय स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसका उच्च स्तर धमनियों में प्लाक बिल्डअप का कारण बन सकता है, जिससे दिल का दौरा और अन्य गंभीर हृदय संबंधी स्थितियों का जोखिम बढ़ जाता है। कार्डियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया ने हाल ही में दिशा-निर्देश जारी किए हैं जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए खराब कोलेस्ट्रॉल का लक्ष्य उसके जोखिम प्रोफाइल के आधार पर निर्धारित किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, जिन व्यक्तियों को पहले से ही हृदय रोग या मधुमेह है, उनके लिए खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर 55 mg/dL से कम होना चाहिए।
विशेषज्ञ की राय
दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की प्रोफेसर डॉ. प्रीति गुप्ता कहती हैं कि कोलेस्ट्रॉल के प्रभावी प्रबंधन के लिए प्रत्येक रोगी की व्यक्तिगत ज़रूरतों के आधार पर उपचार आवश्यक है। जब उपचार व्यक्तिगत तरीके से किया जाता है, तो रोगी जल्दी ठीक हो जाते हैं और परिणाम भी बेहतर होते हैं।
व्यक्तिगत हृदय स्वास्थ्य योजना के प्रमुख तत्व
इसमें उचित आहार, नियमित व्यायाम और तनाव प्रबंधन शामिल है, जिसे व्यक्ति की स्थिति के अनुरूप बनाया जा सकता है।
नियमित जांच से एलडीएलसी के स्तर पर नज़र रखी जा सकती है और समय-समय पर उपचार में बदलाव किया जा सकता है।
कई मामलों में, सिर्फ़ जीवनशैली में बदलाव ही काफ़ी नहीं होते। दवाओं की सही खुराक और संयोजन को व्यक्तिगत योजना के तहत भी तय किया जा सकता है।
अपने डॉक्टर के साथ खुलकर बातचीत करना महत्वपूर्ण है ताकि उपचार को बेहतर ढंग से समझा जा सके और उसका पालन किया जा सके।