क्या कोर्ट में गीता पर हाथ रखकर कसम खानी होती है? जानें सच्चाई

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कोर्ट रूम से जुड़े दृश्य अक्सर फिल्मों और वेब सीरीज में दिखाए जाते हैं, जो लोगों के मन में गहरी छवि छोड़ जाते हैं। इनमें गवाह को गीता पर हाथ रखकर कसम खाते हुए दिखाया जाता है कि वह सच के अलावा कुछ नहीं कहेगा। लेकिन असल जिंदगी में क्या वास्तव में कोर्ट में ऐसा होता है? आइए इस विषय पर विस्तार से चर्चा करते हैं और सच को जानने का प्रयास करते हैं।

फिल्मों में कोर्ट रूम का दृश्य

1. गवाह और गीता का रिश्ता

फिल्मों और वेब सीरीज में, जब भी कोई गवाह कटघरे में खड़ा होता है, उसे गीता पर हाथ रखकर यह कसम खानी होती है:
“मैं कसम खाता हूं कि जो कहूंगा, सच कहूंगा, सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा।”
यह सीन लगभग हर कोर्ट ड्रामा में दिखाया जाता है और इसे एक परंपरा जैसा पेश किया जाता है।

2. क्या यह वास्तविकता है?

इस तरह के दृश्य का इस्तेमाल फिल्मों में दर्शकों को नाटकीयता का अनुभव देने के लिए किया जाता है। लेकिन असल जिंदगी में कोर्ट की प्रक्रिया फिल्मों से काफी अलग होती है।

वास्तविक कोर्ट रूम की प्रक्रिया

1. गीता पर हाथ रखने का रिवाज नहीं

वकालत से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय न्यायालयों में गीता पर हाथ रखकर कसम खाने की कोई प्रक्रिया नहीं है। गवाह से यह जरूर कहलवाया जाता है:
“जो भी कहूंगा, सच कहूंगा, सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा।”
लेकिन इसके लिए गीता या किसी अन्य धार्मिक पुस्तक का इस्तेमाल नहीं किया जाता।

2. गवाह की गवाही प्रक्रिया

  • गवाह को कोर्ट में बुलाने के बाद उसका नाम पुकारा जाता है।
  • गवाह कटघरे में खड़ा होता है और न्यायाधीश या वकील द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देता है।
  • गवाही के दौरान किसी धार्मिक पुस्तक पर हाथ रखने की आवश्यकता नहीं होती।
  • गवाही के बाद गवाह कोर्ट रूम से बाहर चला जाता है।

3. ऐतिहासिक संदर्भ

कभी-कभी यह माना जाता है कि पुराने समय में जज गीता पर हाथ रखकर कसम दिलवाते थे। हालांकि, आज की न्यायिक प्रणाली में ऐसा कोई नियम नहीं है।

फिल्मों और असलियत में अंतर

1. फिल्मों का नाटकीय प्रस्तुतीकरण

फिल्में और वेब सीरीज मनोरंजन के उद्देश्य से कोर्ट रूम की प्रक्रिया को अधिक नाटकीय बनाती हैं। गीता पर हाथ रखने का दृश्य दर्शकों के लिए एक धार्मिक और सत्यता की भावना जोड़ने के लिए दिखाया जाता है।

2. वास्तविकता में सरलता

असल जिंदगी में, भारतीय न्यायालयों में गवाही की प्रक्रिया अधिक व्यावहारिक और सीधी होती है। गवाह को केवल सच बोलने की शपथ लेनी होती है, जो शब्दों में होती है, न कि किसी पुस्तक पर हाथ रखने से।

क्यों नहीं होती गीता का उपयोग?

1. धर्मनिरपेक्षता का पालन

भारतीय संविधान धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों का पालन करता है। गीता, कुरान, बाइबल जैसी धार्मिक पुस्तकों का उपयोग केवल एक विशेष धर्म के अनुयायियों को प्रोत्साहित कर सकता है, जो अन्य धर्मों के लिए असंगत होगा।

2. सत्यता की गारंटी

गवाही देने के दौरान गवाह को केवल सच बोलने की शपथ लेनी होती है। यह प्रक्रिया सभी के लिए समान है और इसमें किसी विशेष धार्मिक प्रतीक की आवश्यकता नहीं होती।

कोर्ट रूम में गवाही का उद्देश्य

गवाही का उद्देश्य न्याय प्रक्रिया में सच्चाई स्थापित करना है। इसके लिए जरूरी है कि गवाह ईमानदारी और निष्पक्षता से अपनी बात रखे।

सच बोलने की शपथ:

गवाह को यह शपथ दिलाई जाती है कि वह जो भी कहेगा, वह सच और केवल सच होगा।
यह शपथ गवाह की जिम्मेदारी और सत्यनिष्ठा को सुनिश्चित करने का एक कानूनी तरीका है।